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Home यादें

यादें-1998 की वह पहली मुंबई यात्रा (भाग-6)

Deepak Dua by Deepak Dua
1998/08/22
in यादें
0
यादें-1998 की वह पहली मुंबई यात्रा (भाग-1)
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-दीपक दुआ…

यह 26 अगस्त, 1998-गणेश चतुर्थी वाले दिन की ही बात है। धारावाहिक ‘महायज्ञ’ की शूटिंग देखने और उसके एक सीन में एक्टिंग करने के बाद अब मैं अकेला प्रचारक मित्र आई.पी.एस. यादव जी के साथ एक ऑटो-रिक्शा पकड़ कर अंधेरी पश्चिम के आदर्श नगर की उस सोसायटी में पहुंचे जहां आई.पी.एस. यादव जी मुझे सुनिधि चौहान नाम की एक नई उभरती किशोरी गायिका के घर ले गए।

(पिछला भाग पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)

मिलना सुरीली सुनिधि से

सुनिधि उस समय मात्र 15 वर्ष की थीं और करीब दो बरस पहले सुनील शैट्टी वाली फिल्म ‘शस्त्र’ का एक गाना गाने के बाद दूरदर्शन के एक टेलेंट हंट शो ‘मेरी आवाज़ सुनो’ की विजेता भी बन चुकी थी। उस शाम सुनिधि के घर में बिताए उन पलों में सुनिधि व उनके पिता दुष्यंत चौहान ने बहुत भावुक होकर मुझे अपने परिवार की संघर्ष गाथा सुनाई कि कैसे वे लोग दिल्ली में अपना घर-बार छोड़ कर सुनिधि को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने के लिए कुछ साल पहले मुंबई आ गए थे, कैसे यहां सुनिधि कदम-दर-कदम आगे बढ़ते हुए इस शो की विजेता बनीं जिसमें वादा किया गया था कि एक म्यूज़िक कंपनी विजेता का अलबम निकालेगी और कैसे इस शो को खत्म हुए महीनों बीत चुके हैं, अलबम तैयार है लेकिन वह कंपनी उसे रिलीज़ नहीं कर रही है। दुष्यंत जी ने अलमारी से निकाल कर उस अलबम की मास्टर कैसेट मुझे सुनाई और बताया कि इस अलबम के एक गीत ‘ऐरा गैरा नत्थू खैरा…’ के नाम पर ही इस अलबम का नाम रखा जाएगा। मैंने उनसे कहा कि यह नाम बचकाना है और हो सके तो उस म्यूज़िक कंपनी से बात करके इसी अलबम के एक अन्य गीत के बोलों पर इसका नाम ‘चूड़ियां’ रखवाएं। (खैर, ऐसा हो न सका और बाद में वह अलबम ‘ऐरा गैरा नत्थू खैरा’ के नाम से ही रिलीज़ हुआ और पिट गया।)

सुनिधि के घर में उस समय उनकी छोटी बहन सुनेहा (या स्नेहा) और उनकी मां भी मौजूद थीं जिन्होंने मेरे लिए चाय के साथ स्वादिष्ट पकौड़े बनाए। मेरे आग्रह पर सुनिधि ने दो-एक गीत भी गुनगुनाए। गणेश चतुर्थी के उस दिन उनके परिवार ने भी अपने घर में गणपति की एक छोटी-सी मूर्ति की स्थापना की थी। सुनिधि और मेरी फोटो में गणपति की उस मूर्ति का कुछ हिस्सा देखा जा सकता है। उस दिन सुनिधि से मेरी जो बातचीत हुई उस पर आधारित उनका एक इंटरव्यू बाद में ‘दैनिक जागरण’ अखबार में प्रकाशित हुआ था जिसे नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर के पढ़ा जा सकता है।

ओल्ड इंटरव्यू : लता जैसा बना मेरा सपना है-सुनिधि चौहान

इसके करीब एक साल बाद रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘मस्त’ और इसके गाने ‘रुकी रुकी थी ज़िंदगी झट से चल पड़ी…’ से सुनिधि के कैरियर की गाड़ी चलने लगी थी। 1999 में दिल्ली के होटल ली मैरिडियन में हुई ‘मस्त’ की प्रैस-कांफ्रैंस में दुष्यंत चौहान ने मुझे उस इंटरव्यू के लिए धन्यवाद देते हुए काफी आदर के साथ सुनिधि से मिलवाया था।

काफी देर सुनिधि के घर में बिताने के बाद मैं और आई.पी.एस. यादव जी चलने लगे तो दुष्यंत जी ने यादव जी से कहा कि मुझे किसी बढ़िया जगह खाना खिलाया जाए। गोरेगांव स्टेशन के पास होटल प्रशांत में हम लोग जब डिनर कर रहे थे तो देखा कि अक्सर टी.वी. धारावाहिकों में दिखने वाली कुछ शक्लें भी वहां मौजूद हैं। वहां से हम लोग चले तो पहले मलाड के दिंडोशी नगर में यादव जी के घर पहुंचे जहां से ऑटो-रिक्शा लेकर मैं अपने ठिकाने पर लौटा तो दरवाजा उन मोहतरमा ने खोला जो अपने पति के साथ उस फ्लैट के दूसरे कमरे में रहती थीं। उन्होंने बताया कि विद्युतजी के कोई अभिनेता मित्र मिलने के लिए आए हुए थे और सब लोग मेरा इंतज़ार करके उन्हें विदा करने ऑटो-स्टैंड तक गए हुए हैं। अगला दिन मेरे और विद्युत भाई के लिए खास होने वाला था क्योंकि उस दिन हमें एक ऐसे कलाकार से मिलना था जिन्होंने 1998 में अपना लोहा मनवा लिया था और आज भी हम उन्हें चाव से देखना पसंद करते हैं।

(आगे पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: dainik jagrandushyant chauhanI.P.S. Yadavmumbaimumbai 1998sunidhi chauhan
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