-दीपक दुआ…
26 अगस्त, 1998। अपनी इस पहली मुंबई यात्रा के दौरान उस दिन एक टी.वी. सीरियल में एक्टिंग (…?) करने के बाद मैं लगभग दो घंटे तक उस गायिका सुनिधि चौहान के घर पर था। उस दौरान उनसे हुई बातचीत पर आधारित एक आलेख ‘दैनिक जागरण’ को भेजा था। पढ़िए-
(उस मुंबई यात्रा के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।)
सुनिधि चौहान फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों के बीच एक जाना-पहचाना चेहरा बन चुकी हैं। इन दिनों टीवी के विभिन्न चैनलों पर अपने पहले हिंदी अलबम के एक गाने ‘ऐरा गैरा नत्थू खैराए कोई न इनके आगे ठहरा…’ को गाती दिखाई दे रही हैं। वैसे सुनिधि को पहली पहचान दो बरस पहले दूरदर्शन पर आए अन्नू कपूर संचालित टीवी शो ‘मेरी आवाज़ सुनो’ से मिली थी जिसमें महज 13 साल की उम्र में उन्होंने अपने से बड़े कई गायकों को पछाड़ कर लता मंगेशकर के हाथों पहला पुरस्कार पाया था। उसके बाद फिल्म ‘शस्त्र’ के गाने ‘लड़की दीवानी देखो लड़का दीवाना…’ को भी सुनिधि ने ही आवाज़ दी थी। फिलहाल नौंवी क्लास में पढ़ रही सुनिधि दिल्ली के करोल बाग की रहने वाली हैं। यहीं उनका जन्म हुआ। सुनिधि के गाने के शौक और गायकी के क्षेत्र में नाम कमाने की तमन्ना को पूरा करने के मकसद से ही उनके पिता सपरिवार अब मुंबई में बस गए हैं।
सुनिधि ने बताया, ‘दिल्ली में मैंने बचपन से ही जागरण और स्टेज शो में गाना शुरू कर दिया था। वहीं पर हमारी मुलाकात एक बार तबस्सुम जी से हुई। उन्होंने कहा कि कभी हम मुंबई आएं तो उनसे मिलें। चार साल पहले जब हम लोग यहां आए तो तबस्सुम जी ने हमें कल्याण जी-आनंद जी से मिलवाया। उनके ग्रुप ‘लिटिल वंडर’ के साथ मैंने काफी प्रोग्राम किए। फिर ‘फिल्म फेयर अवार्ड नाइट’ में मैंने प्रोग्राम दिया था। वहीं पर संगीतकार आदेश श्रीवास्तव जी से मेरी मुलाकात हुई और मुझे उन्होंने ‘शस्त्र’ में गाने का मौका दिया।’
आश्चर्य है कि सुनिधि ने संगीत का विधिवत प्रशिक्षण नहीं लिया है। हालांकि अब वह पिछले छह-सात महीने से गौतम मुखर्जी से संगीत सीख रही हैं। सुनिधि की ख्वाहिश सभी तरह के गीत गाने की है चाहे वे क्लासिकल हों, हल्के-फुल्के गीत या फिर पॉप संगीत। और किस तरह के गाने पसंद हैं? इस पर स्मृति बड़ी परिपक्वता से बताती हैं, ‘जब मैं बहुत ही अच्छे मूड में होती हूं तो मैं किशोर कुमार जी के गाने सुनती हूं। खासकर उनके भावुक गीत मुझे बहुत अच्छे लगते हैं जैसे ‘फिर वही रात है…’ और ‘खुशी दो घड़ी की…’ जैसे गाने हैं जो सीधे दिल को छूते हैं। बाहर कहीं सफर में होती हूं तो इंग्लिश गाने सुनती हूं। फिर लता जी के कई गाने मुझे बेहद पसंद हैं।’
लता जी को अपना आदर्श मानने वाली सुनिधि बताती हैं, ‘मैंने ‘मेरी आवाज़ सुनो’ में भाग भी सिर्फ यह सुन कर लिया था कि उसमें फर्स्ट आने वाले को लता जी अपने हाथों से पुरस्कार देंगी। उससे पहले और उसके बाद मैंने किसी कंपीटिशन में हिस्सा नहीं लिया।’ किसी कलाकार की कामयाबी के लिए उसकी प्रतिभा या किस्मत के सवाल पर सुनिधि का मानना है, ‘वैसे तो टैलेंट ही काफी होता है पर आज के हिसाब से देखें तो किस्मत भी ज़रूर होनी चाहिए। नहीं तो आप देखिए कि इस देश में मुझसे अच्छा गाने वाले भी कई लोग होंगे पर उनके बारे में कोई नहीं जानता। तो यह मेरी किस्मत ही है जो मुझे ऐसे मौके देती है।’
सुनिधि ने जल्द आने वाली फिल्मों ‘दहक’, ‘चाईना गेट’, ‘बड़े दिलवाला’, ‘फादर एंथोनी’ आदि के गानों में अपनी आवाज़ दी है। यानी वह लगातार मंज़िल की ओर बढ़ रही हैं मगर धीरे-धीरे। वह सभी बड़े गायकों के साथ गाने की तमन्ना रखती हैं। एक सवाल गायन से हट कर। क्या अभिनय की ओर जाने का इरादा है? ‘जा सकती हूं, अगर अच्छा रोल मिले, बहुत अच्छा, साफ-सुथरा तब।’
यूं तो सुनिधि ने कई भाषाओं में, कई शहरों में और कई देशों में अपने प्रोग्राम दिए हैं पर उन्हें सबसे अच्छा लगा कोलकाता और केरल में अपने कार्यक्रम पेश करके। ‘काफी धीरज है वहां के लोगों में। वे लोग आर्टिस्ट की कद्र करना जानते हैं। वे उसे सुनते हैं और उसका हौसला बढ़ाते हैं।’ माधुरी दीक्षित उनकी सबसे पसंदीदा हीरोइन है। पुराने लोगों में वहीदा रहमान और दिलीप कुमार की वह कायल हैं। गाने के अलावा कोई और शौक? ‘मुझे पियानो बजाने का शौक है और अच्छी फिल्में देखने का भी जैसे ‘सदमा’, ‘आनंद’, ‘अनुभव’ और अभी जो ‘सत्या’ आई है, ऐसी फिल्में पसंद हैं मुझे।’
सुनिधि अपनी उम्र के बच्चों से कहना चाहती हैं, ‘वे जिस भी क्षेत्र में हों, उसमें खूब मेहनत करें और सबसे पहली बात अपने माता-पिता की इज़्ज़त करें तो उन्हें कामयाबी ज़रूर मिलेगी।’ यह पूछे जाने पर कि लता जी को आप अपना आदर्श मानती हैं, क्या उन जैसा बनने का सपना भी देखती हैं? ‘लता जी तक पहुंचना तो बहुत मुश्किल है पर अपनी तरफ से मैं अपने-आप को स्थापित करने की पूरी कोशिश करूंगी। बाकी लता जी जैसा बन पाना मेरा सपना तो है ही, किसका नहीं होगा?’
(नोट-यह इंटरव्यू ‘दैनिक जागरण’ समाचार-पत्र में 12 नवंबर, 1998 को प्रकाशित हुआ था।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)