-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
नवमी का दिन है। प्रदेश में एक-एक कर के नामी लोग किडनैप हो रहे हैं-मौलाना, महंत, प्रोफेसर, डॉक्टर, नेता, समाज सुधारक… यानी ऐसे लोग जिन पर समाज का भला करने का ज़िम्मा है। इन सभी पर कभी न कभी बलात्कार का आरोप रहा है लेकिन या तो ये छूट गए या ज़मानत पर बाहर हैं। कुछ देर बाद इनमें से एक का वीडियो सोशल मीडिया पर आता है जिसमें वह खुद पर लगे रेप के आरोप को कबूल करता है। कुछ घंटे में एक और वीडियो आता है। कुछ घंटे बाद एक और। क्या है यह…? कौन कर रहा है…? क्यों कर रहा है…? और कल दशमी के दिन ऐसा क्या होने वाला है जिसे लाइव देखने के लिए सबसे कहा जा रहा है…?
समाज में घर कर चुकी किसी बुराई और उसे अंजाम दे रहे बुरे लोगों को चुन-चुन कर सबक सिखाने का काम प्रशासन और पुलिस की बजाय कुछ लोग करने लगे और पुलिस उन्हें पकड़ने में जुट गई-इस किस्म की कहानियां अक्सर आती हैं और दर्शक इन्हें अमूमन सराहते भी हैं क्योंकि बुराइयों व बुरे लोगों से घिरे दर्शक को पर्दे पर इनका संहार होते देखना सुहाता है। यही कारण है कि इन फिल्मों को देखते समय दर्शक की सहानुभूति कानून के रक्षक पुलिस वालों के लिए कम और कानून हाथ में लेकर बुराइयों से लड़ रहे लोगों के प्रति ज़्यादा होती है। इस फिल्म को देखते हुए भी मन करता है कि ये लोग पुलिस के हाथ में न आएं और बलात्कारियों के साथ कुछ ऐसा करें जिससे बाकी लोग सबक ले सकें।
शांतनु अनंत तांबे की लिखी कहानी अच्छी है और उन्होंने अपनी स्क्रिप्ट को भी भरसक रोचक बनाए रखने की सफल कोशिश की है। किसी खास प्रदेश या शहर का नाम न लेकर उन्होंने इसे पूरे समाज से जोड़ा है। लेकिन कई जगह वह लड़खड़ाए भी हैं। ‘दशमी’ नाम से फिल्म को जोड़ने वाला हिस्सा काफी लंबा और बोर करने वाला है। पूरी फिल्म में छुपे हुए हीरो एक्शन कर रहे हैं लेकिन अंत में उनका भाषण पिलाना फिज़ूल लगता है। संवादों के स्तर पर फिल्म बेअसर है। कई किरदार और उनकी भाषा भी डगमग है। फिल्म जब तक रफ्तार में रहती है, जंचती है। फिल्म बताती है कि जब तक हमारे आसपास के रावण ज़िंदा हैं, राम राज्य नहीं आ सकता।
बतौर निर्देशक शांतनु अनंत तांबे औसत किस्म का काम करते हैं। ए.सी.पी. बने आदिल खान जंचे हैं। वर्धन पुरी (अमरीश पुरी के पोते), गौरव सरीन, मोनिका चौधरी, राजेश जायस आदि औसत ही रहे। एक गाना अच्छा है व फिल्म के माफिक है। फिल्म का कम बजट और कम चमकीले, कम प्रभावी कलाकारों का असर फिल्म की लुक और क्वालिटी पर दिखाई देता है। बावजूद इसके इस फिल्म को देखा जाना चाहिए।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-16 February, 2024 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
एक बारे अगर फ़िल्म को देख लिया जाय तो बुराई ना होगी…..
कम बजट कि कुछ ही फ़िल्में विरली होती हैँ…. जो हिट हो पाती हैँ… वरना *दशमी* क्या… ग्यारहवीं भी बना देंगे तो तो औसतन ही रह जाती है….
अगर फ़िल्म निर्माता एक वर्तमान लकीर वाले टॉपिक कि फिल्मों को छोड़कर वही अपनी बॉलीवुड कि पहचान वाली फ़िल्में बनाएंगे तो बेहतर होगा….
फिर भी दो स्टार तो बनते ही हैँ…
Perfect review 🙏
धन्यवाद