-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
हमज़ा शेख (विजय वर्मा) और बदरुनिस्सा (आलिया भट्ट) ने की तो थी लव मैरिज लेकिन शादी के तीन साल में ही लव हो गया एक तरफ। हमज़ा दारू पीकर बदरु को पीटता है लेकिन होश में रहता है तो उससे डरता भी है। बदरु को चाहिए बच्चा, घर, गाड़ी लेकिन हमज़ा को इनमें से कुछ भी नहीं। रोज-रोज पिटने के बाद एक दिन बदरु हमज़ा से निबटने का एक प्लान बनाती है। वह उसमें सफल होती है या नहीं, यह फिल्म में ही देखेंगे तो सही रहेगा।
घरेलू हिंसा हमारे समाज का कड़वा सच है। यह फिल्म भी उसी सच को सामने लाती है, पूरी कड़वाहट के साथ। हमज़ा जब बदरु को पीटता है तो मन होता है कि इस आदमी को पटक-पटक कर मारा जाए। बदरु की मां उसे बार-बार समझाती भी है लेकिन बदरु का कहना है कि जब अंदर से फीलिंग्स आएगी तभी वह कुछ करेगी। क्या है उसके अंदर की फीलिंग्स और तब वह क्या करेगी, यह फिल्म में ही देखेंगे तो सही रहेगा।
इस फिल्म को अनुभव सिन्हा की ‘थप्पड़’ सरीखा एक्टिविज़्म वाला लुक नहीं दिया गया है। बल्कि इसे एक ब्लैक कॉमेडी बनाने की कोशिश ज़्यादा की गई है। हालांकि लेखक मंडली इस काम में बहुत ज़्यादा तो सफल नहीं हो पाई है लेकिन पूरी फिल्म के दौरान आपके होठों पर मुस्कराहट और ज़ेहन में उत्सुकता बनी रहती है कि अब आगे क्या होगा, कैसे होगा। क्या हुआ, कैसे हुआ, यह फिल्म में ही देखेंगे तो सही रहेगा।
जसमीत के. रीन का निर्देशन अच्छा रहा है। मुंबई के एक निम्नमध्यम वर्गीय इलाके के मुस्लिम परिवारों की दशा-दुर्दशा, सोच, तौर-तरीके आदि कायदे से दिखाए हैं जसमीत ने। संवादों के प्रवाह, कलाकारों की टाइमिंग और अंग्रेज़ी के शब्दों को बहुवचन में इस्तेमाल करने से मनोरंजन भी होता है। मेंढक और बिच्छू वाली कहानी के ज़रिए इंसान की फितरत पर करारा व्यंग्य भी किया गया है। दरअसल इस फिल्म को कॉमेडी की बजाय व्यंग्य की श्रेणी में रखा जाना ही सही होगा क्योंकि यह जो बातें कहती है, वे बातें चुभती हैं और इसीलिए असर भी करती हैं। हालांकि कुछ जगह फिल्म की रफ्तार पिटती है, लेकिन यह फिर से संभलती है और आगे बढ़ लेती है। कैसे करती है यह सब, यह फिल्म में ही देखेंगे तो सही रहेगा।
इस फिल्म को इसके विषय, कहानी या किसी भी और चीज़ से ज़्यादा इसके कलाकारों के बेहतरीन अभिनय के लिए देखा जाना चाहिए। शेफाली शाह और आलिया ने मां-बेटी की जोड़ी में कमाल का काम किया है। शेफाली तो जैसे दिल लूटने का बिज़नेस ही करने लगी हैं। विजय वर्मा अपने किरदार के लिए दर्शकों के मन में नफरत उपजा पाने में कामयाब रहे हैं। रोशन मैथ्यू, विजय मौर्य और चुप रहे राजेश शर्मा भी जंचते हैं। सच तो यह है कि एक-एक कलाकार ने कैसा उम्दा और विश्वसनीय काम किया है, यह फिल्म में ही देखेंगे तो सही रहेगा।
नेटफ्लिक्स पर आई इस फिल्म के गीत-संगीत में दम नहीं दिखता। हां, इसकी लुक, लोकेशन, कैमरा सब शानदार है। कुछ एक जगह तर्क छोड़ती, सवाल उठाती, बिना जवाब दिए आगे बढ़ जाती यह फिल्म घरेलू हिंसा को गलत ठहराने के अपने मकसद में किस तरह से कामयाब हुई है, यह फिल्म में ही देखेंगे तो सही रहेगा।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-05 August, 2022
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Wohoo.kamal..dekhenge ab to..thank u so much…❤️
शुक्रिया,बहुत दिन बाद अच्छी फिल्मों की बात चली है
प्लान तो नहीं था पर आपने तारीफ की है तो छोड़ने का सवाल ही नहीं 😍
अब तो फिल्म देखनी ही पड़ेगी
डार्लिंग्स की कहानी बताती है कि बेशक समय बदल गया है पर कहीं न कहीं “”औरत तेरी यही कहानी ” आज भी जारी है! औरत की तकलीफ, दर्द, घुटन, प्रतिकार ये सब आलिया भट्ट और शेफाली ने बहुत ही तरीके से अभिव्यक्त किया है फिल्म में और इस फिल्म को सभी किरदारों के बेहतरीन प्रदर्शन के लिए जरूर देखा जाना चाहिए!! दीपक जी के रिव्यू के बाद तो ये बनता ही है! डार्लिंग्स वाकई डार्लिंग ♥️♥️ हैं