-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
किसी भी किस्म की कहानी में कॉमेडी के पंच डाल कर उसे एक टाइमपास फिल्म में तब्दील करने का हुनर अनीस बज़्मी को बखूबी आता है। अपनी इन कोशिशों में कभी वह ’वेलकम’ और ’सिंह इज़ किंग’ जैसी बढ़िया, कभी ’वेलकम बैक’, ’पागलपंती’ जैसी घटिया तो कभी ’मुबारकां’ जैसी औसत फिल्म दे जाते हैं। ’भूल भुलैया 2’ भी उनकी कोशिशों का औसत नतीजा है।
पहले तो यह जान लीजिए कि यह फिल्म 2007 में आई प्रियदर्शन की ’भूल भुलैया’ का सीक्वेल नहीं है जो खुद 1993 में आई एक मलयालम फिल्म का रीमेक थी। बल्कि इस फिल्म की कहानी को जबरन ऐसा गढ़ा गया है और इसमें मंजुलिका समेत एक बड़ा राजस्थानी खानदान इस तरह से घुसेड़ा गया है ताकि दर्शकों को पिछली वाली ’भूल भुलैया’ का फील मिलता रहे। बाकी कसर बार-बार पिछवाड़े से बजते इसके टाइटल सॉन्ग ने पूरी कर दी है।
कहानी यह है कि बरसों पहले मंजुलिका के भूत को एक कमरे में बंद कर के सारा परिवार कहीं और शिफ्ट हो गया। अब किसी वजह से ये लोग वापस उसी महल में रहने आए हैं तो ज़ाहिर है कि मंजुलिका भी छूटेगी और सब को डराएगी भी। लोगों की इस भीड़ में जोकरों जैसी हरकतें करने और मसखरों जैसे डायलॉग बोलने वाले ढेरों किरदार मौजूद हैं। भई, उनका मकसद आपको डराना और हंसाना, दोनों है वरना कल को आप ही कहेंगे कि पैसे तो वसूल हुए ही नहीं।
सिर्फ हॉरर के दम पर चल जाएं, ऐसी फिल्में कम ही होती हैं। हॉरर में सैक्स घुसाओ तो फैमिली वाली ऑडियंस छिटकती है। इसलिए हॉरर के साथ कॉमेडी घुसाने का रिवाज काफी पहले से रहा है लेकिन इधर ‘स्त्री’ ने यह भी सिखाया कि इस रिवाज को रामसे टाइप हॉरर फिल्मों से निकाल कर बड़े बैनरों, बड़े सितारों वाली फिल्मों में ले आओ तो करोड़ों भी कमाए जा सकते हैं। तो बस, अब यही मिक्स मसाले पीसे जा रहे हैं हिन्दी फिल्मों की चक्की में। जिसे एतराज़ हो, वह देखे जाकर साऊथ की एक्शन फिल्में।
पिछली वाली ‘भूल भुलैया’ ने हॉरर का फील ज़रूर दिया था लेकिन वह असल में एक सायक्लोजिकल सस्पैंस-थ्रिलर थी जिसमें दिखाई गई चीज़ें तर्क की कसौटी पर भी कसी हुई थीं। अब इस वाली ‘भूल भुलैया 2’ को देखते समय आपने जो चीज़ बिल्कुल भी नहीं करनी है वह है तर्क की खोज और दिमाग का इस्तेमाल। भई, एंटरटेनमैंट चाहिए कि नहीं? चाहिए तो चुपचाप हॉरर सीन पर डरते जाइए, कॉमेडी सीन पर हंसते जाइए, बीच-बीच में पॉपकॉर्न लेने और सू-सू करने के लिए उठते जाइए। इतनी गर्मी में फैमिली के साथ देखने वाली एक टाइमपास फिल्म आई है तो उस पर पैसे खर्चिए, फालतू दिमाग खर्च कर अपना और दूसरों का मूड मत बिगाड़िए। वैसे भी अनीस बज़्मी हल्की-फुल्की मनोरंजक फिल्में बनाते हैं, तो उनसे जैसी उम्मीद रहती है, वैसा ही माल मिलेगा न…!
कार्तिक आर्यन का काम एनर्जी से भरपूर रहा है। कियारा आडवाणी को मोहने के लिए रखा गया था, वह मोहती रहीं। तब्बू की एक्टिंग तो उम्दा रहीं लेकिन उन्हें छरहरी दिखने का मोह त्याग कर थोड़ा भरा-पूरा हो जाना चाहिए वरना नाहक ही कोई दिलजला उनकी तुलना चुसी हुई गुठली से कर बैठेगा और हमसे सहन नहीं होगा। राजेश शर्मा, अश्विनी कलसेकर, संजय मिश्रा, राजपाल यादव को मसखरे किरदार मिले, इन्होंने निराश भी नहीं किया। मिलिंद गुणाजी, अमर उपाध्याय, गोविंद नामदेव ठीक रहे। गीत-संगीत औसत रहा और लोकेशन प्रभावी।
यह फिल्म ऑनलाइन मिलने वाले उन हल्की कीमत वाले चमकते कपड़ों की तरह है जो रंगीन पैकिंग में आते हैं, खुलने पर लुभाते हैं, जिन्हें पहन कर आप कुछ दिन इतराते हैं लेकिन बहुत जल्द उन कपड़ों के रंग फीके पड़ जाते हैं। तो इससे पहले कि इसका रंग फीका पड़े, देख लीजिए इसे। पैसे ही खर्च होने हैं, दिमाग को तो आराम मिलेगा।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-20 May, 2022
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Bhut bdia
शुक्रिया…
Bahut badhiya review diya hai aapne ab to dekhna hi padega 😀😀😀😀 aise hi hamaari dimaagi khuraak ka dhyaan rakhte rahiye aapki lekhni yunhi chalti rahe ✌🏻✌🏻✌🏻✌🏻✌🏻✌🏻🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗
धन्यवाद