-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
17वीं शताब्दी के महाराष्ट्र में आए भक्त-कवि, समाज सुधारक, संत तुकाराम के परिवार का संबंध भगवान विष्णु के अवतार माने गए विट्ठल या विठोबा की उपासना करने वाले वारकरी समुदाय से था। उनसे पूर्व इस समुदाय में संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर व संत एकनाथ का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है। अपने पूर्ववर्ती भक्त-कवियों, संतों की भांति उन्होंने भी विट्ठल की स्तुति में भक्ति काव्य रचा जिसे ‘अभंग’ कहा जाता है। यह फिल्म ‘राम कृष्ण हरि…’ जपने वाले उन्हीं संत तुकाराम की भक्तिमय कहानी दिखाती है।
संत तुकाराम के जीवन पर फिल्में हमेशा से बनती आई हैं। 1921 में बनी मूक फिल्म ‘संत तुकाराम’ और 1936 में प्रभात फिल्म कंपनी से आई विष्णुपंत गोविंद दामले निर्देशित मराठी फिल्म ‘संत तुकाराम’ से लेकर आज तक विभिन्न भाषाओं में संत तुकाराम के जीवन का चित्रण सिनेमा में हुआ। लेकिन विडंबना यही है कि नई पीढ़ी के दर्शक आज भी महाराष्ट्र के बाहर उन्हें कम ही जानते हैं। ऐसे में हिन्दी में इस किस्म का सिनेमा आकर जब ज्ञानवर्धन के साथ-साथ भक्ति रस का संचार करता है तो वह सार्थक हो उठता है।
यह फिल्म संत तुकाराम के जीवन की कठिनाइयों और भक्ति मार्ग पर उनकी यात्रा को दिखाने के साथ-साथ उस समय के देश-समाज की परिस्थितियों को भी चित्रित करती है। उनके परिवार वालों, उनके भक्तों और उनके विरोधियों का उनके प्रति कैसा रवैया था, कैसे उन्हें विभिन्न स्रोतों से ज्ञान की प्राप्ति हुई व कैसे उन्होंने अपना पूरा जीवन पांडुरंग विट्ठल को समर्पित कर दिया, यह सब दिखाते हुए यह फिल्म दर्शकों को भक्ति रस से सराबोर करती है। फिल्म के आरंभ में तुकाराम के पूर्वज विशंभर भुवा के चरित्र में संजय मिश्रा जिस सहजता से मूर्ति पूजा का महत्व व भाव बताते हैं, उससे इस फिल्म के बलशाली लेखन का प्रमाण मिलता है। लेखक-निर्देशक आदित्य ओम कई प्रभावशाली दृश्यों के द्वारा संत तुकाराम के जीवन को सरलता से पर्दे पर उतार पाने में सफल रहे हैं।
प्रकाश झा द्वारा किया गया फिल्म का संपादन सटीक है लेकिन कई दृश्य शायद मोहवश लंबे रखे गए जिन्हें छांट कर फिल्म को और अधिक कसा जा सकता है। फिल्म का सीमित बजट इसके सैट्स और लोकेशन में झलकता है। फिल्मी कारोबार की यह विडंबना ही है कि ऐसी फिल्मों को उचित वित्तीय सहायता नहीं मिल पाती जबकि ऐसी फिल्में समाज में फैले द्वेष को कम करके दर्शकों को निष्कपट बने रहने की सीख देकर सिनेमा को सार्थक करती हैं। गीत-संगीत कहीं बहुत उच्च स्तर का है तो कहीं साधारण भी। कुछ एक गीतों की काट-छांट की जानी चाहिए थी।
सुबोध भावे ने संत तुकाराम की भूमिका को प्रभावी ढंग से निभाया है। तुकाराम के विरोधी मंबा जी के किरदार में शिवा सूर्यवंशी असरदार रहे हैं। शीना चौहान, शिशिर शर्मा, अरुण गोविल, ललित तिवारी, हेमंत पांडेय, गणेश यादव, ट्विंक्ल कपूर जैसे अन्य कलाकार सही रहे।
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Release Date-18 July, 2025 in theaters
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)
भक्ति… में भक्ति का रस