-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
फन्ने खां खुद तो बड़ा
गायक बन नहीं पाया लेकिन अपनी बेटी लता को बड़ी गायिका बनाने के लिए वह कुछ भी करने
को तैयार है। एक दिन उसकी टैक्सी में नामी सिंगर बेबी सिंह बैठती है और वो उसे
किडनैप कर लेता है। फिरौती में वह चाहता है कि उसकी बेटी को गाने का मौका दिया जाए।
लेकिन पासा पलट जाता है और...!
अनिल कपूर, ऐश्वर्या राय बच्चन, राजकुमार राव, गिरीश कुलकर्णी, दिव्या दत्ता आदि मंजे हुए कलाकार हैं लेकिन
फिल्म उन्हें कोई ऐसा बड़ा मौका नहीं देती कि वे गहरा असर छोड़ सकें। लता के किरदार
में नई अदाकारा पीहू संड अपनी सहजता से प्रभावित करती हैं। अपने अभिनेता पिता
परितोष संड और अभिनेत्री मां सपना संड (‘बरेली की बर्फी’
में राजकुमार राव की
मां) की विरासत को उन्होंने बखूबी संभाला है।

अपने बच्चों के लिए
सपने देखने और उनके सपनों को सच करने में जुटे मां-बाप की कहानियां इधर लगातार आ
रही हैं। लेकिन ऐसी ज़्यादातर फिल्मों में मां-बाप अपने सपने बच्चों पर थोपते ही
दिखाई देते हैं। ‘जो मैं नहीं बन पाया, वो मेरी बेटी या बेटा बनेगा’ टाइप की ये कहानियां अगर प्रेरणादायक हों, भावुक करती हों, हंसाती या रुलाती हों, चुभती या कोंचती हों तो चलता है। लेकिन यहां
ऐसा कुछ भी नहीं दिखता। फन्ने को पता है कि कितने लाख में उसकी बेटी का अलबम बन
सकता है। लेकिन वो पैसे लेने की बजाय उसके लिए चांस चाहता है। किडनैप हो चुकी
सिंगर उसकी कैद में खुश है,
लेकिन वो उससे मदद
मांगने की बजाय उसके मैनेजर से डील करता है। सच तो यह है कि यह कहानी सहजता से
बहने की बजाय लेखक की मनमानी से चलती दिखाई देती है। स्क्रिप्ट न सिर्फ धीमी है
बल्कि बार-बार झोल भी खाती है। संवादों में कोई दम नहीं है। लता अपने पिता से इतनी
खफा क्यों है,
इसका कोई कारण तो
बताया जाता। म्यूज़िकल फिल्म होने के बावजूद एक गाने को छोड़ बाकी सब हल्के हैं।

बड़े-बड़े सितारों की
मौजूदगी से फिल्म के प्रति जो उम्मीदें बंधती हैं, यह उन पर खरी नहीं उतरती। फिल्म न तो ठहाके
लगवा पाती है,
न भावुक कर पाती है, न इसमें कोई थ्रिल है, न यह आपके ज़ेहन में जगह बना पाती है। हां, इसे देखते हुए एक
मुस्कुराहट ज़रूर आपके होठों पर लगातार बनी रहती है। पर जब 130 मिनट भी लंबे लगने लगें तो कसूर उस नए
निर्देशक (अतुल मांजरेकर) के साथ-साथ उन स्थापित निर्माताओं (अनिल कपूर, राकेश ओमप्रकाश मेहरा, भूषण कुमार) का ज़्यादा गिना जाएगा जो कहानी
और पटकथा में वजन डालने की बजाय बस, दो और दो पांच करने की फिराक में रहते हैं।
अपनी रेटिंग-दो स्टार
शानदार जबरदस्त
ReplyDeleteशुक्रिया...
DeleteWas thinking ki kuch toh Khas hoga is me...par wahi jhol
ReplyDeleteसचमुच...
DeleteKuch Sikhana Chahti hae
ReplyDelete"FANNEY KHAN"