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Home फ़िल्म रिव्यू

हल्के मीठे वाली ‘बरेली की बर्फी’

CineYatra by CineYatra
2021/05/31
in फ़िल्म रिव्यू
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बरेली की बिट्टी मिश्रा आजादख्याल है। सिगरेट, शराब, अंग्रेजी फिल्में, ब्रेक डांस और बागी तेवर उसकी पहचान हैं। एक उपन्यास ‘बरेली की बर्फी’ की नायिका में अपने ही जैसे ‘गुणों’ को पाकर वह उसके लेखक प्रीतम विद्रोही की खोज में लग जाती है। मदद करता है उस उपन्यास का असली लेखक चिराग दुबे। प्रेम-त्रिकोण की तमाम खींचतान के बाद अंत तो मीठा होना ही हुआ। भई, नाम में ही बर्फी जुड़ा है।

पिछले साल अपनी पहली फिल्म ‘निल बटे सन्नाटा’ से डायरेक्टर अश्विनी अय्यर तिवारी ने सशक्त पहचान पाई थी। अब इस फिल्म से उनकी पहचान को और मजबूती मिली है। छोटे शहर-कस्बे की कहानियां कहना आसान नहीं होता। परिवेश से लेकर किरदारों की बोली, पहनावे और तमाम दूसरी बातों में वास्तविकता का ख्याल रखना पड़ता है। अश्विनी और उनकी टीम इस कसौटी पर खरी उतरी है। लेकिन दिक्कत फिल्म के लेखन पक्ष के साथ है। एक विदेशी उपन्यास पर आधारित इस कहानी को बरेली की पृष्ठभूमि में काफी विश्वसनीय अंदाज में ढाला गया है। लेकिन फिर भी काफी कुछ फीका-फीका सा लगता है। बिट्टी लड़कों जैसी क्यों है? और क्या लड़कों जैसे ऐब पालना ही किसी लड़की को आजादख्याल बनाता है? उस जैसे तेवर वाली लड़की घर से क्यों भागी? चिराग ने अपनी पहली प्रेमिका को ‘बर्फी’ ही क्यों कहा, क्या सिर्फ तुक मिलाने के लिए? बरेली के मशहूर फर्नीचर और सुरमे का कहीं जिक्र तक न होना जैसी बातें अखरती हैं। फिल्म की रफ्तार और पैनापन इन्हें ढक सकता था लेकिन यहां भी दिक्कत है। इस रोमांटिक कॉमेडी में रोमांस भी कम है और कॉमेडी भी। आप मुस्कुराते तो हैं लेकिन खुल कर हंस नहीं पाते।

फिल्म का बरेली वाला कलेवर लुभाता है और तमाम कलाकारों का अभिनय इसकी सबसे बड़ी खूबी है। आयुष्मान खुराना इस तरह के किरदारों में ही जंचते हैं। कृति सैनन में जबर्दस्त स्पार्क है। उनका भविष्य काफी उजला है। राजकुमार राव एक ही किरदार में दो जुदा किस्म का अभिनय करके सब पर भारी पड़ते दिखाई देते हैं। पंकज त्रिपाठी और सीमा भार्गव तो गजब लगे हैं। आयुष्मान के दोस्त बने राहुल चौधरी और कृति की सहेली बनी स्वाति सेमवाल समेत बाकी छोटे-छोटे किरदारों में आए कलाकार भी प्रभावित करते हैं। गीत-संगीत साधारण रहा है। लोकेशन और कैमरावर्क माहौल को असरदार बनाते हैं।

Tags: बरेली की बर्फी
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