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Home फ़िल्म रिव्यू

स्वरा भास्कर-खूब खेलती हूं होली

CineYatra by CineYatra
2021/05/31
in फ़िल्म रिव्यू
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-दीपक दुआ…

‘तनु वैड्स मनु’, ‘लिसन अमाया’, ‘रांझणा’, ‘तनु वैड्स मनु रिटर्न्स’, ‘प्रेम रतन धन पायो’, ‘निल बटे सन्नाटा’ जैसी फिल्मों की काबिल अदाकारा स्वरा भास्कर बहुत जल्द ‘अनारकली ऑफ़ आरा’ में आने वाली हैं। अपनी जिंदगी के फलसफों, अपनी फिटनेस और होली खेलने की तैयारियों को वह हमसे खुल कर साझा करती हैं।

-अपने व्यक्तित्व की कौन-सी चीज आपको सबसे ज्यादा पसंद है?
-बहुत सारी चीजें हैं। लेकिन चुनौतियों को स्वीकार करने का मेरा जो एटिट्यूड है वह मुझे सबसे ज्यादा अच्छा लगता है। अक्सर मुझसे यह सवाल भी पूछा जाता है कि आपने एक ऐसी फिल्म को हां क्यों कहा जिसे करने से बाकी लोग हिचक रहे थे। तो मेरा जवाब होता है कि शायद बाकी लोग उस चुनौती को स्वीकार करने से हिचक रहे थे जो मुझे इस फिल्म या रोल में नजर आई।

-फिटनेस आपके क्या मायने रखती है?
-बहुत ज्यादा। वैसे भी एक अभिनेत्री होने के नाते फिट और स्वस्थ रहना मेरी जरूरत भी है और मजबूरी भी। हम लोग अक्सर कई-कई दिन तक रोजाना 14-15 घंटे तक काम करते हैं तो जाहिर है कि हमारा शारीरिक और मानसिक तौर पर फिट होना जरूरी हो जाता है। ऐसे में कई बार हमारा डेली रुटीन भी गड़बड़ा जाता है और कैमरा हमारे अनफिट होने की चुगली करने से बाज नहीं आता। तो काफी जरूरी है कि हम खुद को फिट रखें ताकि अपने काम के साथ पूरा न्याय कर सकें।

-खुद को कैसे फिट रखती हैं?
-हफ्ते में कम से कम तीन-चार बार जिम जाती हूं और तीन दिन योगा भी करती हूं। इसके अलावा अपने खाने-पीने पर खास ध्यान देती हूं। कोशिश करती हूं कि बाहर का खाना कम ही खाऊं और घर पर भी तेल, चीनी वगैरह कम ही लेती हूं।

-क्या आप को लगता है कि अच्छी जिंदगी जीने के लिए अच्छा भोजन जरूरी है?


-बिल्कुल जरूरी है। लेकिन मेरा मानना है कि भोजन स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होना चाहिए। अच्छा भोजन न सिर्फ हमारे शरीर पर बल्कि मानसिक तौर पर भी हम पर असर करता है।

-खाने-पीने में किन चीजों को ज्यादा लेती हैं और किन से दूर रहती हैं?
-ज्यादातर तो मैं घर का बना खाना ही खाती हूं। रोटी, हरी सब्जियां, दलिया, साग, दाल वगैरह। नाश्ते में अंडे और ओट्स लेती हूं। हफ्ते में दो-तीन बार चिकन भी लेती हूं। सफेद चावल, आलू, सफेद ब्रेड, सफेद चीनी और अधिक तेल से परहेज करती हूं।

-कभी कुछ उलटा-पुलटा खाने का मन करता है तो?
-तो फिर मैं खुद को रोकती नहीं हूं। दिल्ली में पली-बढ़ी हूं तो दिल्ली का स्ट्रीट-फूड बहुत खाया है। गोल गप्पे, भल्ले-पापड़ी, टिक्की, बंटा लैमन, चाउमिन, छोले-भठूरे और जलेबी-रबड़ी मुझे बहुत पसंद हैं। यहां मुंबई में भी कभी मन होता है तो मक्खन वाली पाव-भाजी खा लेती हूं लेकिन कोशिश करती हूं कि यह कभी-कभार ही हो।

-आपको नहीं लगता कि फिटनेस और खूबसूरती एक ही सिक्के के दो पहलू हैं?


-जी, बिल्कुल लगता है। मेरे लिए फिट होने के असल मायने ही हैं स्वस्थ, तंदुरुस्त, चुस्त, फुर्तीला होना और रोजमर्रा की जिंदगी की भाग-दौड़ को बिना थके करना। मेरा मानना है कि जो लोग मानसिक और शारीरिक रूप से फिट होते हैं उनके चेहरे पर जरूर एक खूबसूरत निखार होता है।

-अपनी खूबसूरती का ख्याल कैसे रखती हैं?
-सही खाना, सही समय पर खाना, रोजाना कम से कम 8 घंटे की नींद लेना, दिन में कम से कम 6 लिटर पानी पीना, ताजे फल और सब्जियां खाना, अपनी स्किन को साफ और माइस्चराइज रखने जैसे उपाय करती हूं।

-तनाव-मुक्त रहने के लिए क्या करती हैं?
-सच तो यह है कि मुंबई जैसे शहर में और खासतौर से हमारी फिल्म इंडस्ट्री में सुकून वो बकरा है जो आपको अपने सपनों को पूरा करने की दौड़ में सबसे पहले बलि चढ़ाना पड़ता है। मेरा मानना है कि टैंशन फ्री रहने के लिए जीवन में संतुलन बनाना बहुत जरूरी है। मैं दो चीजें करती हूं। एक तो हर काम खुद पर ओढ़ने की बजाय सिर्फ वही लेती हूं जो मुझे कम्फर्टेबल लगता है और दूसरे, जब कभी असमंजस में होती हूं तो अपने से नीचे देखती हूं और खुद को खुशकिस्मत समझती हूं।

-खुल कर जीने के लिए घूमना-फिरना कितना जरूरी समझती हूं?


-बहुत ज्यादा। मैं तो अक्सर ऐसी जगहों पर जाती हूं जहां मैं पहले कभी नहीं गई होती। मुझे ऐसी जगह खासतौर पर पसंद हैं जिनका कोई इतिहास हो, जिनके बारे में जान कर मुझे महसूस हो कि यहां कुछ बीत चुका है। ऐसी जगहों पर जाना और उस अतीत से जुड़ने का अहसास मुझे भाता है।

-और मनपसंद कपड़ों का एक अच्छी जिंदगी में कितना योगदान मानती हैं?
-मनपसंद और आरामदायक कपड़े हमें खुल कर जीने में मदद करते हैं। लेकिन सिर्फ कपड़े ही नहीं बल्कि मनपसंद रहन-सहन, जीवन शैली, अभिव्यक्ति भी होनी चाहिए। बेखौफ परंतु जिम्मेदार आजादी जरूरी है।

-पढ़ना कितना पसंद करती हैं?
-मैंने अंग्रेजी साहित्य में ग्रेजुएशन किया है तो पढ़ने का शौक मुझे शुरू से ही है। लेकिन अब मुझे यह अहसास हुआ है कि हिन्दी साहित्य की दुनिया काफी विशाल है और इसे पढ़ कर मैं अपनी जुबान पर चढ़ चुके अंग्रेजीपन को भी कम कर सकती हूं। ज्यादातर तो उपन्यास ही पढ़ती हूं। मुझे मंटो और इस्मत चुगताई का लिखा काफी पसंद है।

-क्या आध्यात्मिक होना भी जिंदगी को भरपूर जीने में कोई मदद करता है?


-मेरा मानना है कि अध्यात्म से जिंदगी को मायने मिलते हैं। किसी भी ऐसी चीज या विचार में विश्वास जरूर होना चाहिए जो हमें राह दिखाए। वह विचार ‘नास्तिक’ होना भी हो सकता है। खुद से हट कर किसी चीज में उम्मीद ढूंढना ही मेरे लिए अध्यात्म की शुरूआत है।

-होली और होली की मस्ती कितनी पसंद है?
-बहुत ज्यादा। होली तो मेरा फेवरेट त्योहार है। हर चीज भूल कर, सारे काम, सारे दुख भूल कर कुछ घंटे के लिए यह त्योहार हमारे जीवन में जो मस्ती लेकर आता है, वह हमें अगले कई दिन तक रिचार्ज करने के लिए काफी होती है।

-होली पर अपनी त्वचा और बालों की केयर कैसे करती हैं?


-पहले मैं होली मनाते समय खुद को, अपनी स्किन को, अपने बालों को भूल जाती थी। पर अब अगले दिन शूटिंग करनी होती है तो ज्यादा रिस्क नहीं ले पाती हूं। सो, इस दिन अपने बालों में खूब सारा तेल चुपड़ लेती हूं और स्किन को भी अच्छे से माइस्चराइज कर लेती हूं ताकि बाद में रंग निकालने में दिक्कत न हो।
(अपना यह आलेख ‘हिन्दुस्तान’ में 10 मार्च, 2017 को छपा है)

Tags: Anarkali Of ArrahSwara Bhaskar
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