– दीपक दुआ…
‘गली बॉय’ ऑस्कर के लिए क्या भेजी गई कि हर साल की तरह आरोप-प्रत्यारोप और विलाप-प्रलाप का सिलसिला शुरू हो गया। किसी को लगता है कि यह ऑस्कर के लिहाज से बेहद कमजोर फिल्म है तो किसी का कहना है कि इसे भेजे जाने में भाई-भतीजावाद का हाथ है। हालांकि इस तरह की बातें न तो अब नई रह गई हैं और न ही अनोखी। हर साल ऑस्कर में भेजी जाने वाली फिल्म के समर्थन और मुखालफत में फिल्मी और आम लोग आ खड़े होते हैं। लेकिन गौर करें तो ‘गली बॉय’ में वह सब कुछ है जो ऑस्कर के लिए फिल्म भेजे जाते समय और बाद में ऑस्कर देने के लिए फिल्म चुनते समय देखा जाता है। आइए, ऑस्कर को जरा करीब से जानते हैं।
ऑस्कर अकादमी मंगवाती है फिल्में
ऑस्कर को दुनिया में सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित फिल्म पुरस्कार माना जाता है। अमेरिका की एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड सांईसेज यानी ऑस्कर अकादमी की तरफ से दिए जाने वाले ये पुरस्कार यूं तो वहीं की फिल्मों के लिए होते हैं लेकिन तमाम अवार्ड्स में से एक पुरस्कार ‘विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म‘ का भी होता है जिस के लिए ऑस्कर अकादमी दुनिया भर से फिल्में आमंत्रित करती है। हालांकि इस साल से इस पुरस्कार का नाम ‘अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म’ कर दिया है। भारत से ऑस्कर के लिए फिल्म चुन कर भेजने के लिए अधिकृत संस्था फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया (एफ.एफ.आई.) है जो देश भर के फिल्म निर्माताओं की संस्थाओं से फिल्में भेजने का आग्रह करती है। अलग-अलग भाषाओं से आने वाली इन फिल्मों को एक जूरी देखती है और फिर किसी एक फिल्म को चुन कर ऑस्कर के लिए भेजा जाता है।
1957 से भारत भेज रहा है फिल्में
मलयालम फिल्म ‘अदामिंते माकन अबू’
भारत से पहली फिल्म महबूब खान की ‘मदर इंडिया’ 1957 में ऑस्कर के लिए भेजी गई थी जो आखिरी पांच में नॉमिनेट भी हुई थी। इसके बाद फाइनल फाइव में नामांकित होने का सम्मान मिला 1988 में भेजी गई मीरा नायर की ‘सलाम बांबे’ को। नामांकन पाने वाली अपनी तीसरी और अब तक की आखिरी फिल्म आमिर खान की ‘लगान’ थी जिसे 2001 में भेजा गया था। हाल के बरसों में ‘अदामिंते माकन अबू’, ‘द गुड रोड’, ‘कोर्ट’, ‘विसरनई’, ‘न्यूटन’ जैसी दमदार फिल्में भी भेजी गईं लेकिन इनमें से कोई भी शॉर्ट-लिस्ट तक न हो सकी।
इस साल का हाल
इस साल ऑस्कर के लिए भेजे जाने वाली फिल्म को चुनने का जिम्मा जिस 14 सदस्यों वाली जूरी का था उसकी अध्यक्ष फिल्मकार अपर्णा सेन थीं। कुल जमा 28 फिल्मों में हिन्दी के अलावा तमिल, मलयालम, बांग्ला, गुजराती, नेपाली, असमिया, कन्नड़, तेलुगू जैसी भाषाओं की फिल्में आई थीं जिनमें से जोया अख्तर की ‘गली बॉय’ को नौ वोट मिले। बाकी के पांच वोट अनुभव सिन्हा निर्देशित हिन्दी फिल्म ‘आर्टिकल 15’, निर्मात्री प्रियंका चोपड़ा की नेपाली भाषा की फिल्म ‘पाहुना’ और त्यागराजन कुमारराजा निर्देशित तमिल फिल्म ‘सुपर डीलक्स’ में बंटे। ‘गली बॉय’ 2020 में होने वाले जिस 92वें ऑस्कर समारोह के लिए गई है वहां इसका मुकाबला 92 और देशों से आई फिल्मों से हो रहा है। जाहिर है कि ये इन देशों की बेहतरीन फिल्में ही होंगी। इन में घाना, नाइजीरिया और उजबेकिस्तान ने पहली बार कोई फिल्म भेजी है।
कठिन है ऑस्कर की डगर
ऑस्कर के लिए फिल्म भेज देने भर से ही काम पूरा नहीं हो जाता बल्कि ऑस्कर अकादमी के सदस्यों के बीच अपनी फिल्म का जम कर प्रचार भी करना होता। ‘लगान’ से पहले तक हमारे ज्यादातर प्रोड्यूसर सिर्फ रस्मी तौर पर ही अपनी फिल्म वहां भेज रहे थे लेकिन मार्केटिंग के मास्टर आमिर खान ने वहां जाकर जो धमाकेदार प्रचार किया उसी का नतीजा था कि अकादमी के सदस्यों का ध्यान इस फिल्म पर गया और उन्होंने इसे देखने की जहमत उठाई। पहले ऑस्कर अकादमी के सैंकड़ों सदस्य मिल कर नौ फिल्मों को शॉर्ट-लिस्ट किया करते थे लेकिन इस साल से इस लिस्ट में 10 फिल्में होंगी जिनका ऐलान इसी साल 16 दिसंबर को किया जाएगा। उसके बाद अकादमी के सदस्य उन दस फिल्मों में से आखिरी पांच फिल्मों को नॉमिनेट करेंगे जिनकी घोषणा अगले साल 13 जनवरी को की जाएगी और आखिर 9 फरवरी को हॉलीवुड के डॉल्बी थिएटर में होने वाले समारोह में इन पांच में से किसी एक फिल्म को ऑस्कर की सुनहरी मूरत हासिल होगी।
‘गली बॉय’ ही क्यों
इस बार की जूरी प्रमुख अपर्णा सेन के मुताबिक ‘गली बॉय’ न सिर्फ तकनीकी तौर पर बेहद उन्नत फिल्म है बल्कि इसकी उर्जा चौंकाती है। साथ ही यह भारतीय समाज के उन दो वर्गों को साफ-साफ चिन्हित करती है जिनमें से एक के पास बहुत कुछ है और दूसरा कुछ पाने के लिए संघर्ष कर रहा है। सच तो यह है कि यह वाला ऑस्कर अभी तक जिन फिल्मों को मिला है उनमें से ज्यादातर में किसी अंडरडॉग की ही कहानी थी। यानी कोई ऐसा किरदार जो समाज के निचले, शोषित, वंचित, हाशिये पर बैठे वर्ग का हिस्सा है और अपने संघर्ष व जुनून से वह कुछ बड़ा हासिल करता है। याद कीजिए ‘लगान’ भी ऐसी थी। ‘गली बॉय’ जिस तरह से मुंबई की झोंपड़पट्टी के दो रैप-गायकों की कहानी को पर्दे पर दिखाती है वह तारीफ ही नहीं, पुरस्कारों की भी हकदार हो जाती है और इसी आस पर इसे ऑस्कर के लिए भी भेजा गया है। तो क्या ‘गली बॉय’ का टाइम आएगा? क्या इस फिल्म के जरिए ऑस्कर भारत की धरती पर आ पाएगा? इन सवालों के जवाब पाने के लिए 16 दिसंबर तक तो रुकना ही पड़ेगा। फिल्म ‘गली बॉय’ का रिव्यू यहां पढ़ें
(नोट-यह लेख संपादित रूप में ‘हरिभूमि’ के 10 नवंबर, 2019 के अंक में प्रकाशित हुआ है।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)