• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

ओल्ड रिव्यू-देस की बात, लोगों की बात ‘स्वदेस’ में

CineYatra by CineYatra
2021/06/04
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (Featured in IMDb Critics Reviews)
‘प्रहार’ के अंत में मेजर चव्हाण कहते हैं कि देश का मतलब क्या है? नदियां, पहाड़, सड़कें, इमारतें बस। और लोग कहां हैं? आशुतोष गोवारीकर की यह फिल्म इन्हीं लोगों के बारें में बात करती है, हम लोगों के बारे में बात करती है। वह बात करती है जिसे करना बॉक्स-ऑफिस की नज़र से जोखिम भरा हो सकता है लेकिन एक प्रतिबद्ध और जागरूक फिल्मकार और नागरिक के तौर पर ऐसी बातें होनी चाहिएं, होती रहनी चाहिएं।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ में वैज्ञानिक मोहन भार्गव (शाहरुख खान) अपने बचपन की दाई कावेरी अम्मा (किशोरी बल्लाल) की सुध लेने और उन्हें अपने साथ ले जाने के लिए भारत के एक छोटे-से गांव में पहुंचता है तो पाता है कि अमेरिकी चमक-दमक से परे यह जगह अभी भी विकास की छाया से अछूती है। जाने-अनजाने वह गांव वालों के हितों से जुड़ता चला जाता है और धीरे-धीरे उसे महसूस होने लगता है कि उसकी ज़रूरत अमेरिका और नासा से ज़्यादा इस देश को है।

आशुतोष गोवारीकर हालांकि ‘पहला नशा’ और ‘बाज़ी’ भी बना चुके हैं लेकिन उन्हें याद हमेशा ‘लगान’ के निर्देशक के तौर पर किया जाता है। ज़ाहिर है कि इस फिल्म की तुलना ‘लगान’ से अवश्य की जाएगी और यही वजह है कि हर कोई इसे पटक-पटककर धोने पर उतारू नज़र आता है क्योंकि यह ‘लगान’ जितनी सशक्त और कसी हुई नहीं है। लेकिन यहां सवाल यह भी उठता है कि हम ऐसी अपेक्षा करें भी क्यों? आज जब हर तरफ नंगेपन वाली फिल्मों का, एक्शन-थ्रिलर फिल्मों का और रोमांस की चाशनी में लिपटी पलायनवादी फिल्मों का बोलबाला है और ऐसे में कोई आशुतोष इस तरह का विषय उठाने की कोशिश करता है जो फिल्म देश की बात करती है, देश के लोगों और उनकी समस्याओं की बात करती है तो क्या उसका स्वागत पत्थरों से किया जाना चाहिए या फूलों से?



हालांकि ज़्यादातर लोगों को यह विषय किसी डॉक्यूमेंट्री के लिए ही मुफीद लग सकता है। आशुतोष ने जिस तरह से यह फिल्म बनाई है उसमें डॉक्यूमेंट्री की शैली हावी भी रही है और यह भी साफ महसूस होता है कि इसमें ड्रामा काफी कम है। मगर यह बोर भी नहीं होने देती है। यह ज़रूर है कि हमारे यहां के ज़्यादातर दर्शक जिस स्वाद के मनोरंजन की आस लेकर फिल्में देखने जाते हैं वह स्वाद उन्हें इस फिल्म में नहीं मिल सकेगा। लेकिन इससे इसे बनाने वालों की नीयत की ईमानदारी ही सामने आती है। वे चाहते तो इसमें फूहड़ हास्य डाल सकते थे, गांव में रहने वाली नायिका को किसी नदी-तालाब पर नहाते हुए दिखा सकते थे या फिर आजकल का फैशन बन चुका कोई आइटम गाना नौटंकी के नाम पर डाला जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया और ज़ाहिर है कि निर्माता इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे कि वे ऐसा करके जोखिम ही उठा रहे हैं।



फिल्म काफी गहरी और तीखी बातें कहने की कोशिश करती है। हमारे यहां व्याप्त गरीबी, अशिक्षा, छुआछूत, जात-पात जैसे मुद्दों पर यह खुलकर बात करती है। और बड़ी बात यह भी है कि कहीं से भी यह उपदेश देती हुई नहीं लगती है और कुछ ऐसा कह जाती है जिसे अगर समझा और माना जाए तो हमारे देश की तस्वीर बदल सकती है। नायक अमेरिकी माहौल में रहने का आदी है। भारत के गांव में आकर भी वह मिनरल वॉटर पीता है और अपनी गाड़ी में सोता है। लेकिन बुनियादी मुद्दों के बारे में वह यहां वालों से ज़्यादा गहरी नज़र रखता है। उधर नायिका गीता (गायत्री जोशी) दिल्ली की पढ़ी एक आधुनिक बाला है और फिर भी गांव के स्कूल में पढ़ाती है। उसका मानना है कि हथेलियां सिर्फ मेहंदी रचाने के लिए ही नहीं होतीं। वह एक अमीर युवक का रिश्ता भी इसलिए ठुकरा देती है क्योंकि वह युवक से शादी के बाद उसे घर में बांध कर रखना चाहता है। शाहरुख और उसके बीच का रोमांस वैसा नहीं है जैसा दूसरी फिल्मों में होता है। दोनों की एक-दूसरे के प्रति चाहत उनकी आंखों में नज़र आती है और दर्शक इसे साफ महसूस भी करते हैं।



कहानी और पटकथा की अपनी कमियों और धीमी रफ्तार के बावजूद यह नएपन का अहसास देती है। के.पी. सक्सेना के संवाद कई जगह बेहद जानदार हैं। खासकर अमेरिका में रेस्टोरेंट खोलने का सपना देखने वाले मेला राम का यह संवाद कि अब हम यहीं रहेंगे। अपनी चौखट का दीया पड़ोसी के घर रोशनी करे तो उससे क्या फायदा? यही संवाद शाहरुख को कचोटता है और वह भारत लौट आता है। अभिनय सभी का उम्दा है। गायत्री जोशी के रूप में एक उम्दा अदाकारा का आगमन हुआ है। गीत ज़्यादा लोकप्रिय भले ही न

हों लेकिन कहानी में गुंथे नज़र आते हैं। फिल्म यह नहीं कहती कि अपने यहां की मिट्टी में पल-बढ़ और यहां के हवा-पानी पर जी कर विदेशों का रुख न किया जाए मगर यह इस बहस को ज़रूर जन्म देती है कि जब आपका अपना देश समस्याओं से जूझ रहा हो तो आप किसी और देश में जाकर सेवा कैसे कर सकते हैं? विदेशों का रुख करने वाली हमारी प्रतिभाशाली नस्ल का एक छोटा हिस्सा भी अगर इस फिल्म से प्रभावित होकर अपने देश की सुध ले सके तो बड़ी बात होगी।
रेटिंग-साढ़े तीन स्टार
(नोट-यह रिव्यू ‘फिल्मी कलियां’ पत्रिका के फरवरी-2005 अंक में प्रकाशित हुआ था)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: Ashutosh Gowarikarbachan pachehrafarrukh jaffargayatri joshikishori ballallekh tandonmakrand deshpandeShahrukh KhanSwades review
ADVERTISEMENT
Previous Post

कलम तोड़ ‘बाग़ी बलिया’

Next Post

बुक रिव्यू-कोरे पन्नों पर लिखी इरफान की दास्तान

Related Posts

रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’
CineYatra

रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’

रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’
CineYatra

रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’

रिव्यू-बिना वर्दी वाले जवानों का ‘मिशन मजनू’
CineYatra

रिव्यू-बिना वर्दी वाले जवानों का ‘मिशन मजनू’

वेब-रिव्यू : उस मनहूस दिन के बाद का संघर्ष दिखाती ‘ट्रायल बाय फायर’
CineYatra

वेब-रिव्यू : उस मनहूस दिन के बाद का संघर्ष दिखाती ‘ट्रायल बाय फायर’

रिव्यू-इस हमाम में सब ‘कुत्ते’ हैं
CineYatra

रिव्यू-इस हमाम में सब ‘कुत्ते’ हैं

वेब-रिव्यू : सड़ांध मारती ‘ताज़ा खबर’
फिल्म/वेब रिव्यू

वेब-रिव्यू : सड़ांध मारती ‘ताज़ा खबर’

Next Post

बुक रिव्यू-कोरे पन्नों पर लिखी इरफान की दास्तान

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – [email protected]

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.