-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
69 की उम्र में विजय मैथ्यू को अहसास होता है कि उसने पूरे जीवन में आखिर किया क्या? कल को वह मर गया तो लोग उसकी तारीफ में क्या बोलेंगे? वह तय करता है कि वह ट्रायथलन में हिस्सा लेगा और 67 की उम्र में ट्रायथलन पूरी कर चुके किसी शख्स का रिकॉर्ड तोड़ेगा। ट्रायथलन यानी एक साथ डेढ़ किलोमीटर स्विमिंग, 40 किलोमीटर साइक्लिंग और दस किलोमीटर की दौड़। क्या विजय यह सब कर पाएगा? कर ही लेगा क्योंकि सपनों की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती।
चलिए जी, यह तो हुई कहानी की बात। इस किस्म की फिल्मों की कहानियां तो प्रेरक होती ही हैं। इसकी भी है। लेकिन ऐसी फिल्मों में कहानी से बढ़ कर होता है उसका ऐसा वाला प्रेज़ेंटेशन जो दर्शकों के रोंगटे खड़े कर दे, उनके दिलों में भावनाओं का ज्वार पैदा कर दे, उनका दिमाग झंझोड़ दे और जिसे देख कर लगे कि अगर इस फिल्म के हीरो की तरह हमने यह नहीं किया तो फिर क्या किया। लेकिन अफसोस यह फिल्म इस मोर्चे पर नाकाम रही है, बुरी तरह से।
दिक्कत असल में इस फिल्म की लिखाई के साथ है। अक्षय रॉय ने कहानी का आइडिया तो अच्छा सोच लिया और उसे ट्रायथलन के साथ जोड़ कर अच्छा विस्तार भी दे दिया लेकिन उसी कहानी को एक स्क्रिप्ट के तौर पर बुनते और उसमें किस्म-किस्म की घटनाओं व किरदारों को चुनते समय वह फैल गए और नतीजे के तौर पर जो बन कर आया वह न सिर्फ रूखा है बल्कि सूखा भी है और पिलपिला भी।
हालांकि इस किस्म की कहानियों की अपने यहां कोई कमी नहीं रही। खुद अनुपम खेर कुछ समय पहले सूरज बड़जात्या की ‘ऊंचाई’ में इसी फ्लेवर वाली कहानी में आ चुके हैं। लेकिन इस फिल्म में अक्षय रॉय ने जिस तरह से घटनाएं गढ़ी हैं, जिस तरह से उन्हें फैलाया और समेटा है, जिस तरह के उन्होंने किरदार लिए हैं, उसे देख कर लगता नहीं है कि उनका इरादा एक प्रेरक-फिल्म बनाने का था। करीब साढ़े सात साल पहले यशराज फिल्म्स के लिए ‘मेरी प्यारी बिंदु’ जैसी कमज़ोर फिल्म बनाने के बाद अब यशराज के लिए ही यह फिल्म लेकर आए अक्षय को पटकथा लेखन का काम किसी और से करवाना चाहिए था। कोई और शख्स स्क्रिप्ट लिखता तो उन्हें बताता कि जिस फिल्म को बच्चों-बूढ़ों के लिए प्रेरक होना चाहिए, जिस फिल्म को परिवार के साथ बैठ कर देखा जाना चाहिए, उस फिल्म में गालियां, फूहड़ता, बचकानापन डालने का मनमानापन नहीं करना चाहिए।
(रिव्यू-गुड़गुड़ गोते खाती ‘मेरी प्यारी बिंदु’)
अनुपम खेर सधे हुए अभिनेता हैं। पिछले दिनों ‘सिग्नेचर’ और अब यह फिल्म करते हुए देख कर लगता है कि किसी बड़े पुरस्कार की भूख उनके भीतर फिर से जगने लगी है। चंकी पांडेय कभी खिजाते तो कभी प्रभावित करते रहे। कॉमेडी के नाम पर खीं-खीं करते बाकी के कलाकार बस ठीक-ठाक ही रहे।
(रिव्यू-संदेश और उपदेश ‘द सिग्नेचर’ में)
नेटफ्लिक्स पर आई इस फिल्म को थोड़ी देर देखने के बाद मन होता है कि फास्ट फॉरवर्ड कर लिया जाए। शुक्र है कि यह ओ.टी.टी. पर आई, थिएटरों में यह सुविधा नहीं मिल पाती।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-08 November, 2024 on Netflix
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)