-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
करीब छह बरस पहले आई ‘स्त्री’ तो याद ही होगी आपको! चंदेरी कस्बे में साल में चार दिन होने वाली महापूजा के दिनों में आती थी एक भूतनी। उससे बचने के लिए लोग अपने घरों के बाहर ‘ओ स्त्री कल आना’ लिखवाते थे। उस फिल्म के अंत में स्त्री तो चली गई थी लेकिन साथ ही उससे टकराने वाली वह लड़की भी गायब हो गई थी जिसका नाम, नंबर, पता कोई नहीं जानता। स्त्री की चोटी भी वह अपने साथ ले गई थी। कहीं वह लड़की ही तो ‘स्त्री’ नहीं थी? उसके बाद से चंदेरी के लोग ‘ओ स्त्री रक्षा करना’ कह कर स्त्रियों को मान देने लगे थे।
लंबा समय बीत चुका है। एक बार फिर चंदेरी कस्बे में उथल-पुथल मची है। इस बार मर्द नहीं लड़कियां गायब हो रही हैं। वह भी आधुनिक सोच वाली लड़कियां। कोई सरकटा इंसान है जो यह सब कर रहा है। कौन है वह? क्यों कर रहा है वह यह सब? क्या चाहिए उसे? क्या इससे भिड़ने भी वही लड़की आएगी? आएगी तो क्या यह पता चल पाएगा कि आखिर यह लड़की कौन है? कहीं यह लड़की ही तो ‘स्त्री’ नहीं है?
(रिव्यू-समाज की सलवटों को इस्त्री करती ‘स्त्री’)
इस फिल्म के नाम ‘स्त्री 2-सरकटे का आतंक’ से ही साफ है कि इस बार दर्शकों को डराने की ड्यूटी स्त्री को नहीं, बल्कि सरकटे को दी गई है। हां, हंसाने का काम इस बार भी उन सबके पास है जो पिछली वाली फिल्म में यह कर रहे थे। पिछली वाली फिल्म लिखने वाले राज-डी.के. ने हाॅरर की सीमित खुराक के साथ काॅमिक पंचेस की जो बौछार की थी उसे इस बार वाली फिल्म के लेखक निरेन भट्ट ने मूसलाधार में बदल दिया है। डर देखना पसंद करने वाले इस फिल्म को देख कर डरेंगे और हंसना पसंद करने वाले इसे देख कर हंसेंगे। यह इस फिल्म को लिखने वालों की सफलता है।
डायरेक्टर अमर कौशिक ने अपने बुने जाल को इस बार और कसा है। दो-तीन जगह हौले-से लचकने के अलावा उन्होंने पूरी फिल्म को इस कदर संभल कर पकड़े रखा है कि कहीं भी वह इसे फिसलने नहीं देते हैं। आप पर्दे से आंखें हटाएंगे तो कोई बढ़िया सीन मिस कर देंगे और कान हटाएंगे तो कोई चुटीला डायलाॅग। यह इस फिल्म को बनाने वालों की सफलता है।
और सिर्फ लेखन व निर्देशन ही नहीं, वी.एफ.एक्स., बैकग्राउंड म्यूज़िक, सैट्स, सिनेमैटोग्राफी जैसे तमाम तकनीकी मोर्चों पर भी यह फिल्म जम कर खड़ी नज़र आती है। एक्टिंग तो खैर सभी की शानदार है ही। राजकुमार राव, अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बैनर्जी, पंकज त्रिपाठी, श्रद्धा कपूर, सुनीता राजवर, अतुल श्रीवास्तव व अन्य सभी कलाकार अपने-अपने किरदारों को घोल की पी चुके हैं। पहले सीन में डाकिया बन कर आए अपने ‘नंदू’ यानी अजय सिंह पाल जमे और कुछ देर के लिए आईं तमन्ना भाटिया भी लुभा गईं। सरप्राइज़ के तौर पर आए दो बड़े स्टार भी बढ़िया रहे। गाने देखने में जंचते हैं।
(मिलिए हॉस्पिटल के सामने फू-फू करते नंदू से)
पिछली वाली फिल्म की तरह ‘स्त्री 2’ भी अपने लुक, लोकेशन, किरदारों की बुनावट, कलाकारों की एक्टिंग, काॅमिक फ्लेवर, हाॅरर की खुराक, चुटीले संवादों आदि के दम पर एक दर्शनीय फिल्म हो उठती है। जहां पिछली वाली फिल्म ढेर सारे मनोरंजन के साथ-साथ एक अलग अंदाज़ में समाज की सलवटों को इस्त्री करने का काम कर रही थी वहीं इस बार वाली फिल्म और ज़्यादा गहराई से अपनी बात सामने रखती है। यह बताती है कि जब समाज में सरकटे (बुद्धिविहीन) लोगों का आतंक होता है तो वे सबसे पहले स्त्रियों को ताले में बंद करते हैं। इन लोगों से औरतों की तरक्की, उनका आगे बढ़ना नहीं देखा जाता। लेकिन ऐसे लोगों से टक्कर लेने के लिए भी स्त्रियां ही आगे आती हैं। अंत में आकर फिल्म भावुक करती है। साथ ही यह फेमिनिज़्म का झंडा उठाने वालों को भी राह दिखाती है।
‘स्त्री 2’ जैसी फिल्में समाज को ही नहीं, सिनेमा को भी ताकत देती हैं। ऐसी फिल्में रक्षा करती हैं उस सिनेमा की जो भरपूर मनोरंजन और चुहलबाजियों के बीच भी कायदे से अपनी बात कह जाता है। ऐसी फिल्म को हमें यही कहना चाहिए-ओ स्त्री, आती रहना!
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-15 August, 2024 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
आपका रिव्यु पढ़कर ही फ़िल्म को एक ट्रेलर क़े रूप में देख लिया जाता है….. यह फ़िल्म पुराने कलाकारों क़े चलते…. औऱ पुरानी कहानियो को नए अंदाज़ में पेश करने क़े हवाले से देखने लायक़ होगी….. क्यूंकि मेरा बचपन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुज़रा हैँ तो वहां ये ‘सरकटा’ एक मनगढंत डरावने किरदार क़े रूप में आज भी मौजूद है….