-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
1993 में मुंबई में हुए बम धमाकों में 400 किलो आर.डी.एक्स. इस्तेमाल हुआ था। लेकिन बाहर से आया तो 1000 किलो था। बाकी का 600 किलो कहां गया? धमाके करने वाले तो पकड़े गए लेकिन मास्टरमाइंड भाग गए। आज 27 साल बाद मुंबई एक बार फिर से खतरे में है। क्या इंस्पैक्टर सूर्यवंशी बचा पाएगा मुंबई को, भारत को?
‘सिंहम’ और ‘सिंबा’ की कतार में रोहित शैट्टी की इस अगली फिल्म में पुलिस की वर्दी अक्षय कुमार के बदन पर है। और जैसा कि रोहित की ही नहीं बल्कि इस किस्म की किसी भी फिल्म में होता है, इस फिल्म में भी ढेरों आतंकवादी हैं, उनके निशान पर आम लोग हैं और उन्हें बचाने का ज़िम्मा अपने पुलिस वाले हीरो पर है। एक ऐसा हीरो जो फर्ज़ की खातिर अपनी तो छोड़िए, अपने परिवार की जान भी दांव पर लगा दे। इस फिल्म का नायक भी अपनी ड्यूटी और गृहस्थी के बीच झूल रहा है।
फिल्म की कहानी बेहद साधारण है। लेकिन इस तरह की फिल्मों में कहानी से ऊपर होती है स्क्रिप्ट और उससे भी ऊपर होता है उस स्क्रिप्ट को पर्दे पर उतारने का हुनर। इस फिल्म में रोहित ने इस कदर तेज रफ्तार में इसकी कसी हुई स्क्रिप्ट को पर्दे पर उतारा है कि उसकी सारी कमियां छुप गई हैं वरना कोई गंभीरता से पकड़ने निकले तो इसी स्क्रिप्ट में से ढेर सारी गलतियां ढूंढ कर स्यापा शुरू कर दे। लेकिन जब इस तरह की चटपटी फिल्म हो तो फिर उसमें मसालों की क्वांटिटी देखी जाती है, उनकी क्वालिटी नहीं।
यह फिल्म जहां एक तरफ भारत के खिलाफ बाहर से की जा रही साज़िशों की बात करती है वहीं देश के भीतर रह रहे उन आस्तीन के सांपों की तरफ भी इशारा करती है और जो नाम-रूप बदल कर सुप्त अवस्था में रहते हैं ताकि मौका मिलते ही डस सकें। वहीं यह फिल्म देश में अमन चाहने वालों की नेकनीयत और कारस्तानियों को भी दिखाती है। गणपति की मूर्ति को सुरक्षित ले जा रहे मुसलमानों के पार्श्व में बजता ‘छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी…’ सीधा संदेश देता है कि तरक्की और शांति की चाह में बीती बातों पर मिट्टी डालनी ही होगी। आंखें नम कर देता है यह सीन। वहीं यह फिल्म पुलिस या सुरक्षाकर्मियों के परिवार वालों के डर को भी दिखाती है और अहसास कराती है कि जब हम लोग अपने परिवार के संग बेफिक्री से रह रहे होते हैं तो उसके पीछे कितने ही लोग अपनी पारिवारिक ज़िंदगी की आहुति दे रहे होते हैं।
अक्षय कुमार एक्शन भूमिकाओं में जंचते हैं, यहां भी जंचे हैं। नाम भूलने की अपनी आदत से हंसाते भी हैं। कुल मिला कर मज़ेदार किरदार है उनका। लेकिन इस मज़े में मसाला तब जुड़ता है जब रणवीर सिंह यानी सिंबा का आगमन होता है। रही-सही कसर सिंहम अजय देवगन की धुआंधार एंट्री से पूरी हो जाती है। कैटरीना कैफ, जैकी श्रॉफ, गुलशन ग्रोवर, निकितन धीर, जावेद जाफरी, सिकंदर खेर, राजेंद्र गुप्ता, कुमुद मिश्रा, अभिमन्यु सिंह, आसिफ बसरा जैसे तमाम कलाकार भी कायदे के रोल न मिलने के बावजूद भरपूर सपोर्ट करते हैं।
ऐसी फिल्में मीनमेख निकालने से ज़्यादा मज़े के लिए देखी जाती है, देखी जानी चाहिएं। थिएटरों में रौनक लाने, भीड़ बढ़ाने का काम करती हैं ऐसी फिल्में। परिवार संग बैठ कर मसालेदार भोजन करने जैसा आनंद देती हैं ऐसी फिल्में। दोस्तों संग मिल कर धुआंधार बैटिंग करने का लुत्फ देती हैं ऐसी फिल्में। न देखी हो तो जाइए, किसी नज़दीकी थिएटर में।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-05 November, 2021
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Good
Thanks…
As always your review is perfect sir…-
Very good sir
Thanks dear…
आपके रिव्यू पढ़कर हर मूवी देखने का मन हो जाता है , लिखने की खूबसूरती ही इतनी ज्यादा अच्छी है ।।।🙌🙌
शुक्रिया शिवानी💐
बढ़िया
शुक्रिया
बढ़िया
धन्यवाद