-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
इस फिल्म और इससे पहले आ चुकी ‘प्यार का पंचनामा’ में कोई खास फर्क नहीं है। वही पुराना सैटअप-तीन लड़के-तीन लड़कियां, लड़कियां के नखरे, लड़कों का दबना, संभलना और पलट कर अपनी राह चल देना। सच तो यह है कि यह फिल्म पिछली वाली फिल्म का सीक्वेल नहीं बल्कि रीमेक ज्यादा लगती है जिसमें वही पुरानी कहानी है, वही पुराने हालात और कुछ कलाकार भी पुराने ही हैं। लेकिन इसे राईटर-डायरेक्टर की काबिलियत का नमूना ही कहेंगे कि इतने पर भी यह फिल्म पूरी तरह से ट्रैक पर रही है। कुछ एक जगह जरूर यह खिंचती-सी लगती है लेकिन उसे बर्दाश्त किया जा सकता है। अपने चुटीले संवादों और दिलचस्प सिचुएशंस के दम पर यह फिल्म ऐसा एंटरटेनमैंट परोसती है जिसे यंग ऑडियंस खासा पसंद कर सकती है। कुंवारे हों या शादीशुदा, बहुतेरे लोग इस फिल्म को अपने करीब पाएंगे। हां, कुछ लोगों को यह फिल्म लड़कियां का मजाक उड़ाती या उन्हें बुरा दर्शाती भी महसूस हो सकती है। अपने सैंसर बोर्ड की बलिहारी जिसे शराब को बढ़ावा देने वाले माहौल दिखाने या आंखें सेंकने का इंतजाम करने में कोई प्रॉब्लम नहीं है लेकिन गालियों पर वह बीप चस्पां कर देता है। एन्जॉय करने के मूड में देखेंगे तो न सिर्फ यह आपको पसंद आएगी, बल्कि चाहें तो इससे कुछ सीख भी हासिल की जा सकती है।
अपनी रेटिंग-3 स्टार
Release Date-16 October, 2015
(नोट-मेरा यह रिव्यू इस फिल्म की रिलीज़ के समय किसी पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)