-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
आदरणीय हिन्दुस्तानी जी, 1996 की मई में जब आप पहली बार सिनेमा के पर्दे पर तमिल में ‘इंडियन’ और हिन्दी में ‘हिन्दुस्तानी’ बन कर आए थे तो हम दर्शकों ने आपका तहेदिल से स्वागत किया था। उस फिल्म में आप नेता जी की सेना में सिपाही थे लेकिन जब आपने आज़ाद भारत में भ्रष्टाचार का बोलबाला देखा तो आप खुद भ्रष्टाचारियों को सज़ा देने में जुट गए। आपके तरीके गैरकानूनी थे लेकिन हम लोग आपके पक्ष में थे क्योंकि आप वह काम कर रहे थे जो दरअसल सरकार को करना चाहिए था। ‘अपरिचित’ तब तक आई नहीं थी और ‘प्रहार’ के मेजर चव्हाण हमें बता गए थे कि सिपाही का काम है लड़ना, लड़ाई के मैदान भले ही बदल जाएं। उस फिल्म के अंत में अपने भ्रष्ट बेटे को मार कर आप हिन्दुस्तान से गायब होकर सिंगापुर चले गए थे। आखिरी सीन में आप हमें उम्मीद दे गए थे कि आप जल्द लौटेंगे और एक बार फिर से भ्रष्टाचारियों का विनाश करेंगे। लेकिन आपने लौटने में 28 बरस लगा दिए, क्यों…?
हिन्दुस्तानी जी, उस फिल्म में आप की उम्र 70 से ऊपर थी। अब ‘हिन्दुस्तानी 2’ में भले ही आपने अपनी उम्र न बताई हो लेकिन इतना गणित तो हर किसी को आता है कि पर्दे पर दसियों लोगों को पटक-पटक कर धो रहे इस बुजुर्ग की उम्र कितनी होगी। फिल्म के अंत में आपका बलशाली शरीर देख कर तो लगा कि ‘कल्कि’ में आपने जो एक बूंद ली थी, उसका असर इस फिल्म में दिखा दिया। खैर, यह फिल्म बताती है कि आज के भारत में हर तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला है। एक भी, जी हां एक भी इंसान ईमानदार नहीं बचा है। मछली बेचने से लेकर खदान खोदने तक, हर तरफ बेईमान हैं। हम हिन्दुस्तानी लोग यह सब चुपचाप सह रहे हैं क्योंकि हम लोगों को आदत है कि कोई मसीहा, सुपरमैन ही हमारे लिए लड़ेगा, हम खुद नहीं। ऐसे में हम आपको पुकारते हैं। हैशटैग कम बैक इंडियन चलाते हैं। आप आते हैं और माहौल बदलने भी लगता है। लेकिन एक घटना के बाद आपके बारे में हमारे विचार बदल जाते हैं और हम कम बैक की बजाय गो बैक इंडियन चिल्लाने लगते हैं। क्या इतने कमज़ोर दिमाग वाले हैं हम सब…?
हिन्दुस्तानी जी, कमल हासन जैसे सिद्धहस्त अभिनेता और शंकर जैसे काबिल निर्देशक की जोड़ी खुद को रिपीट करते समय इतना बेस्वाद और पतला रायता फैलाएगी, यह उम्मीद हमने तो नहीं की थी। लेखन के स्तर पर इतना घिसा-पिटा काम होगा और पूरी तरह से आत्ममुग्ध होकर उसे इतना लंबा फिल्माया जाएगा कि हम हिन्दुस्तानी दर्शक भ्रष्टाचार की बजाय उससे लड़ने की बात कहने वाली फिल्म से ही त्रस्त हो जाएंगे, यह भी हमने नहीं सोचा था। आप इस फिल्म में भ्रष्टाचार के विरुद्ध ज़ीरो टॉलरेंस की बात करते हैं जबकि सच यह है कि इस फिल्म को ही टॉलरेट करना हमारे लिए मुश्किल हो रहा है। आपकी फिल्म में आप कुछ भी ऊटपटांग करेंगे, कैसे भी ऊटपटांग ढंग से करेंगे और हम लोग उसे तालियां-सीटियां बजाते हुए देखते रहेंगे, क्या आपने यही सोचा था…?
हिन्दुस्तानी जी, आपकी इस फिल्म की लिखाई बेहद कमज़ोर है। घटनाएं विश्वसनीय होते-होते बचकानी हो जाती हैं, किरदार कभी भी अपना चोला बदल लेते हैं, कुछ से कुछ हो जाते हैं। और उन्हें निभा रहे कलाकारों में से कईयों को जोकरनुमा होने की क्या ज़रूरत थी। ज़रूरत तो इतने सारे किरदारों की भी नहीं थी। माना कि दक्षिण वालों को भीड़ मैनेज करके मनोरंजन परोसने में मज़ा आता है लेकिन भीड़ हर बार असर छोड़ ही जाए, यह भी तो ज़रूरी नहीं। फिल्म में आप यह बताते हैं कि आप गांधी के रास्ते पर चल कर देश बर्बाद कर रहे लोगों से नेता जी के रास्ते पर चल कर लड़ेंगे। क्या सचमुच आप यही कहना चाहते थे…? और अंत में आप यह मैसेज दे गए कि पूरे हिन्दुस्तान में एक भी इंसान ऐसा नहीं है जो देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए लड़ रहे इंसान का साथ दे। क्या वाकई आप यही मैसेज देना चाहते थे…?
हिन्दुस्तानी जी, आपकी इस फिल्म में ढेर सारा गैरज़रूरी वी.एफ.एक्स. है, बेमतलब की फाइट है, ऊलजलूल सीक्वेंस हैं, गानों के नाम पर पैसे की बर्बादी है, बैकग्राउंड म्यूज़िक में शोर भरा पड़ा है और अब आप अगले साल इस फिल्म के तीसरे भाग में आना चाहते हैं। मगर इस दूसरे भाग में आपने एक उम्दा विषय को बर्बाद करके अपनी जो छिछालेदार कराई है न, उसके बाद तो हम, आपके फैन ही आपसे कहते हैं-‘हिन्दुस्तानी’ वापस जाओ… गो बैक ‘इंडियन’…!
-सादर, हम हिन्दुस्तानी
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-12 July, 2024 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
थैंक्स रिव्यु क़े लिए…
शायद….. एक कहावत कहकर अपना सबमिशन रखता हूं…. नाम बड़े औऱ दर्शन छोटे…..
घर पर बैठकर.. एफ एम पर गाने सुनन्ना बेहतर है… इस मूवी को देखकर टाइमेवेस्ट करने में….
Film to dekhni bhi nahiN thi. Aapka Review padh kar hi mazaa aa gaya
Bahut badhiya Likha hai.
शुक्रिया…