-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
सोनी लिव पर आने वाली वेब-सीरिज़ ‘गुल्लक’ ने शुरुआत से ही अपनी एक ऐसी लुभावनी दुनिया बना ली है जिसमें मध्यमवर्गीय दर्शक को अपनापन नज़र आता है। उसे लगता ही नहीं कि वह कोई सिनेमा देख रहा है। ऐसा महसूस होता है कि वह इसी परिवार का, इसी मोहल्ले का हिस्सा है जहां किस्सों की यह बरसात हो रही है और वह भी मिश्रा परिवार में रखी गुल्लक की तरह उसे अपने भीतर संजो रहा है। ‘गुल्लक’ के इस चौथे सीज़न के पांचों एपिसोड भी इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।
जाती सर्दियों का समय है। मिश्रा परिवार का बड़ा बेटा अन्नू यानी आनंद मिश्रा अपनी नई-नई नौकरी में पैर जमाने की कोशिश कर रहा है। छोटा अमन अब बड़ा हो रहा है, साथ ही बड़ी हो रही हैं उसकी आकांक्षाएं, मन की उड़ानें, इच्छाएं और उद्दंडताएं भी। उधर संतोष मिश्रा और उनकी पत्नी शांति मिश्रा की ज़िंदगी वैसी ही चल रही है। कभी ऊंची तो कभी नीची, कभी कोई मुसीबत तो कभी कोई उलझन। लेकिन मिश्रा परिवार मिल-बैठ कर सब कुछ सुलटा ही लेता है। बिट्टू की मम्मी इस बार भी बिन बुलाए, बिन चाहे इस परिवार में घुसी चली आती हैं।
‘गुल्लक’ की सबसे पहली खासियत इसका लेखन है। इस बार भी इसे लिखने वालों ने अपना फोकस किरदारों और माहौल के अलावा हर एपिसोड में एक नए किस्से को बिखेरने और अंत में उसे समेटने पर ही रखा है। विदित त्रिपाठी ने इस काम को बखूबी करते हुए हर एपिसोड में पात्रों के ज़रिए दर्शकों को ज़िंदगी से जुड़ी सीखें और ज्ञान भी भरपूर परोसा है, कोई बटोर सके तो बटोर ले। श्रेयांस पांडेय का निर्देशन सधा हुआ रहा है। वैसे भी अब तक ये लोग ‘गुल्लक’ का एक ऐसा स्तर बना चुके हैं कि चुनौती इसे उठाने की नहीं, बल्कि इसे बनाए रखने की है और यह काम ये लोग बखूबी कर पा रहे हैं।
कुछ चीज़ें खटक सकती हैं। पहली तो नएपन की कमी। वही ढर्रा, वही किस्से, वही लोग, वही बातें। कहानी में थोड़ी अधिक रफ्तार और पिछली बार से थोड़ा ज़्यादा अंतराल दिखाया जाना चाहिए था। पांच एपिसोड ऐसे थे जैसे सिर्फ पांच दिन की ज़िंदगी। अगली बार कुछ महीने, कुछ साल आगे कहानी ले जाओ मित्रों। वैसे भी मिश्रा परिवार के दोनों बेटे अब डीलडौल से बड़े लगने लगे हैं। हालांकि पांचवें एपिसोड में बदलाव की हल्की-सी आहट दी तो गई है। बिट्टू की मम्मी इस बार कम दिखीं जबकि उनका किरदार इस सीरिज़ का असली तड़का है। पांचवें एपिसोड में बसंत पंचमी के दिन में ठंड और गर्मी, जैकेट और वॉटर कूलर का एक साथ उल्लेख उलझाता है। बाकी सब मस्त है।
‘गुल्लक’ के किरदारों को निभाने वाले कलाकार इसमें जान फूंकते हैं। संतोष मिश्रा बने जमील खान, शांति मिश्रा बनीं गीतांजलि कुलकर्णी, अन्नू बने वैभव राज गुप्ता, अमन बने हर्ष मयार और बिट्टू की मम्मी बनीं सुनीता राजवर के अलावा बाकी के कलाकार भी अपने किरदारों में इस तरह समाए हुए दिखते हैं कि वे कलाकार नहीं बल्कि किरदार हो कर रह जाते हैं। मुंबई से भोपाल जाकर शूटिंग करने वाले लोग वहां के स्थानीय कलाकारों को भी कुछ उम्दा भूमिकाएं दे सकें तो इस किस्म का सिनेमा और गाढ़ा हो सकता है। लोकेशन, संगीत आदि इस सीरिज़ की विश्वसनीयता बढ़ाते हैं।
एक आम परिवार की ज़िंदगी के थोड़े खट्टे, थोड़े मीठे किस्सों से भरी यह ‘गुल्लक’ हर हाल में देखी जानी चाहिए। किस्से नहीं, खजाना है इसमें।
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Release Date-7 June on SonyLiv
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
गुल्लक – बस नाम ही काफ़ी है इस सीरीज़ की सफलता क़े लिए… रिव्यु एकदम सटीक एवं परिपूर्ण… देखी…. मनमोहक एन्ड सीखदायक़