-दीपक दुआ…
28 अगस्त, 1998 की सुबह मैं और विद्युत भाई सबसे पहले गोरेगांव (पूर्व) स्थित स्वाति स्टूडियो में पहुंचे। गेट पर अपना मीडिया कार्ड दिखाया और आसानी से एंट्री मिल गई।
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धारावाहिक ‘ओम नमः शिवाय’ की शूटिंग
दरअसल यहां उस दौर के मशहूर टी.वी. धारावाहिक ‘ओम नमः शिवाय’ का सैट लगा हुआ था और 26 अगस्त की रात विद्युत जी के जो अभिनेता मित्र सुनील गढ़वाली हमारे फ्लैट पर मिलने आए थे वह यहां उस दिन शूट कर रहे थे। उनके बुलावे पर ही हम लोग यहां पहुंचे थे।हमने यहां इंद्र देवता के दरबार के सैट पर फर्श पर मौजूद गंदगी की तरफ ध्यान दिया तो हमें बताया गया कि शूटिंग के दौरान यहां धुआं छोड़ कर स्वर्ग का इफैक्ट दिया जाता है जिससे फर्श तो स्क्रीन पर नज़र भी नहीं आएगा। यहां कुछ देर बिता कर हम लोग दिंडोशी नगर स्थित फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर फोटोग्राफर आर.टी. चावला जी के घर जा पहुंचे। चावला जी बरसों से फिल्मी दुनिया में रह कर फिल्मी हस्तियों व फिल्मी गतिविधियों की तस्वीरें खींच रहे हैं और उन्हें देश के तमाम समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं को बेचते हैं। मुझे भी उनसे ‘चित्रलेखा’ के लिए कुछ तस्वीरें लेनी थीं जिसके बाद हम लोग एक बार फिर इन टी.वी. के ऑफिस जा पहुंचे। प्रचारक मित्र आशीष कौल तो इस बार भी मौजूद नहीं थे अलबत्ता उनकी सहयोगी हिमा मेहता जी ने हमारी खूब खातिरदारी की। हमें लकड़ी के फ्रेम वाली गणेश जी की एक-एक मूर्ति भेंट की जो आज भी मेरे पास है। फिर वह हमें पास ही स्थित एक शानदार रेस्टोरेंट में लंच करवाने भी ले गईं।
वापसी की तैयारी
अब हमारा अगला ठिकाना सोनी म्यूज़िक का ऑफिस था जो सांताक्रूज़ (पश्चिम) में रामकृष्ण मिशन के पास था। यहां से निकल कर विद्युत जी और मैं अलग हो गए और मैं माहिम स्थित अपने मौसा जी के ऑफिस उनसे मिलने चला गया क्योंकि अब अगले ही दिन मुंबई से हमारी वापसी थी। रात को बांद्रा स्टेशन से लोकल पकड़ कर मलाड पहुंचा तो हमारे फ्लैट में रहने वाले कैमरामैन जे.पी. चौधरी ने बताया कि अगले दिन उन्हें एक शूटिंग पर जाना है। उन्होंने हमें भी वहां आने का न्यौता दिया जिसे मैंने फौरन स्वीकार कर लिया।
29 अगस्त, 1998 को विद्युत जी तो कहीं ओर निकल गए और मैं वर्सोवा के उस इलाके में पहुंचा जहां बड़े-बड़े बंगलों में फिल्मों व टी.वी. धारावाहिकों की शूटिंग होती है। यहां स्थित कॉन्वेंट विला में कैमरामैन मित्र जे.पी. चौधरी अपने ज़माने के मशहूर निर्देशक गौतम अधिकारी की एक टेली-फिल्म में कैमरामैन विजय पटनी के सहायक के तौर पर काम कर रहे थे। यहां इन सबके अलावा मैंने अभिनेता अयूब खान से भी काफी बातें कीं जो बाद में ‘चित्रलेखा’ पत्रिका में प्रकाशित हुई जिसे नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर के पढ़ा जा सकता है।
ओल्ड इंटरव्यू : वक्त अभी दूर है-अयूब खान
‘चेहरे’ क्या देखते हो
उस दिन यहां किसी की शोक सभा का सीन शूट हो रहा था और सभी कलाकार झक सफेद पोशाकों में थे। मैंने गौतम अधिकारी से पूछा कि क्या आपने किसी भी शोक सभा में सारे के सारे लोगों को सफेद कपड़ों में देखा है। मेरी बात सुन कर वह ज़ोर से हंसे और बोले कि बात तो आपकी सही है लेकिन फिल्मों में तो यह रिवाज़ हो चला है। खैर, कुछ देर वहां बिता कर अब मुझे अपने फ्लैट पर लौटना था क्योंकि शाम को हमारी दिल्ली की ट्रेन थी। बता दूं कि जिस टेली-फिल्म की यह शूटिंग थी वह कुछ अर्से बाद ‘चेहरे’ नाम से रिलीज़ हुई थी।
गंवाया मनोज वाजपेयी से मिलने का चांस
मलाड पहुंच कर अपने सामान की पैकिंग की। तभी वहां अभिनेता मनोज वाजपेयी के यहां से फोन आया। दरअसल मनोज वाजपेयी का फोन नंबर हमें सौरभ शुक्ला से मिला था और हमने वहां फोन करके अपना नंबर छोड़ दिया था। चूंकि यह हमें आर.आर. पाठक जी से पता चल ही गया था कि मनोज तो इन दिनों मुंबई से बाहर ‘कौन’ की शूटिंग कर रहे हैं तो उनसे मिलने का चांस कम ही था। लेकिन आज आए इस फोन पर बताया गया कि मनोज मुंबई लौट आए हैं और हम लोग चाहें तो आज शाम को मुलाकात हो सकती है। मगर कैसे? आज तो हमें वापसी की ट्रेन पकड़नी थी। मन मसोस कर हमने इस मुलाकात के लिए मना किया और उसी रात बोरिवली स्टेशन से ‘गोल्डन टैंपल मेल’ पकड़ कर दिल्ली को चल दिए।
कई बरस बीत चुके हैं। उसके बाद मैं मुंबई के न जाने कितने चक्कर लगा चुका हूं। लेकिन आज भी मुंबई की वह मेरी पहली यात्रा मेरी यादों में किसी गुलाब के फूल की तरह मौजूद है। इस फूल के पत्ते भले ही सूख चुके हों लेकिन इसकी खुशबू अभी तक कायम है, शायद हमेशा रहेगी।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)