-दीपक दुआ…
25 अगस्त, 1998। मुंबई के वर्सोवा में समंदर किनारे हरमेश विला। अपनी पहली मुंबई यात्रा के दौरान स्टार प्लस पर आने वाले धारावाहिक ‘यह है राज़’ की शूटिंग कवर करने के लिए हम लोग स्टार प्लस के बुलावे पर यहां पहुंचे थे।
(उस मुंबई यात्रा के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।)
सामने खिड़की में से हिलोरें मारता समुद्र आंखों को बरबस मोह रहा था। तभी पुलिस अधिकारी की खाकी वर्दी पहने हाथ में छोटा-सा डंडा लिए दीप्ति भटनागर आती दिखाई दीं। एकबारगी तो लगा ही नहीं कि यह उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले से बरास्ता मॉडलिंग, फिल्मों में आईं वह दीप्ति हैं जिन्हें पिछले 4 वर्षों में दर्शक ‘राम शस्त्र’, ‘कालिया’, ‘कहर’, ‘हिटलर’ और ‘हमसे बढ़कर कौन’ जैसी पांच फिल्मों में देख चुके हैं। ‘डरिए मत, मैं हूं दीप्ति’, हंसते हुए वह बोलीं और हमें अपने मेकअप रूम में ले गईं। साथ में उनका सहायक भी था। उसे स्नेह से डपटते हुए वह बोलीं-‘चल बाहर जा, जब देखो सिर पर खड़ा रहता है।’ दीप्ति से वहां हुई बातचीत के मुख्य अंशः-
-दीप्ति, फिल्मों से टीवी की तरफ कैसे आ गईं?
-बस अचानक ही आ गई (हंसते हुए) ऑफर तो काफी पहले से आ रहे थे। इस बार अचानक मूड बना और आ गई।
-कहीं ऐसा तो नहीं कि फिल्मों में काम न मिल रहा हो?
-नहीं काम की कोई कमी नहीं है (थोड़ा रुक कर) बस एक फिल्म के दौरान थोड़ा मानसिक तनाव हो गया था तो मैंने सोचा कि इससे तो अच्छा है कि टीवी ही कर लेते हैं। यहां लोग अच्छे होते हैं, सब काम सिस्टम से होता है।
-किस तरह का मानसिक तनाव?
-छोड़िए उसे, वह भी जल्दी सामने आ जाएगा (यह कहते हुए दीप्ति के चेहरे पर जो तनाव आया उसे देख कर हमें उसे और कुरेदना ठीक नहीं लगा।
-अभी तक आप दो या तीन हीरोइन वाली फिल्मों में ही दिखाई दी हैं। क्या इसके पीछे किसी तरह की असुरक्षा की भावना है?
-नहीं असुरक्षा तो नहीं है पर… ठीक है…। दरअसल मैंने कभी इस नज़रिए से सोचा ही नहीं कि मैं दो हीरोइन वाली फिल्में कर रही हूं या तीन हीरोइन वाली। फिर ऐसा भी नहीं है कि मुझे सोलो हीरोइन वाली फिल्मों के ऑफर ही न आते हों। अभी मेरी कुछ फिल्में आने वाली हैं जिनमें मैं अकेली हीरोइन हूं। और मैंने सोचा कि चलो काम ही तो करना है, एक्टिंग ही करनी है चाहे वह फिल्म हो या टीवी, तो चलो एक शुरुआत करके देखते हैं कि कैसा रहता है।
-कभी मन में यह नहीं आया कि अब आप छोटे पर्दे पर आ गई हैं तो बड़े प्रोड्यूसर आपको अपनी फिल्मों में लेते हुए हिचकेंगे?
-ऐसा नहीं है, ऑफर्स तो मेरे पास अच्छी-अच्छी फिल्मों के हैं। तीन फिल्में मैंने अभी साइन की हैं जिनमें से दो तो मेरे पुराने प्रोड्यूसर्स हैं जिनके साथ में काम कर चुकी हूं और मुझे लगता है कि अब सब की सोच बदल रही है। अब टीवी का भविष्य बहुत अच्छा है और फिर यह काफी टिकाऊ काम है। मतलब, ऐसा नहीं है कि यहां रोज़-रोज़ आपको प्रोड्यूसर के ऑफिस भागना पड़ेगा पैसे के लिए या वह काम पूरा होने के बाद बोले कि कौन से पैसे? फिल्मों में तो अक्सर ऐसा होता है। कहने का मतलब यह है कि यहां के सिस्टम ने ही मुझे एक तरह से मजबूर किया या आप कह सकते हैं रास्ता दिखाया कि मुझे टीवी कर लेना चाहिए। नहीं तो फिल्मों में क्या है कि काम तो लड़कियों को मिलता ही रहता है। अगर आप जवान हैं, दिखने में ठीक-ठाक है तो वहां काम की कोई कमी नहीं रहती।
-भले ही वह दो सीन, चार गाने का रोल हो?
-जो भी हो, काम मिलता रहेगा आपको। ऐसा नहीं है कि काम की कमी होगी आपको। मैंने सोचा कि टीवी पर आजकल बहुत पैसा है, बहुत अच्छी पब्लिसिटी है, बहुत अच्छे तरीके से काम होता है, किसी तरह का कोई टेंशन भी नहीं रहता। तो यही सोच कर मैंने कर लिया। मुझे कोई दुख भी नहीं होगा अगर मुझे आगे कोई फिल्म न मिले तो। आखिरकर आपको काम करना है और पैसा बनाना है और वह आप यहां भी बना ही रहे हैं।
-‘यह है राज़’ में पुलिस अधिकारी की भूमिका में रूबी भाटिया जैसी खूबसूरत ग्लैमरस लड़की को आलोचक स्वीकार नहीं कर पा रहे थे…
-(बात बीच में काट कर) मुझे तो कर लेंगे मैं ज़्यादा अच्छी नहीं लगती हूं… (हंसती है) नहीं-नहीं, बहुत अच्छी लगती हूं। यह किसने कहा कि लड़की अगर ग्लैमरस है तो उसे पुलिस अधिकारी के रोल में लोग स्वीकार नहीं करेंगे। मुझे तो लगता है कि अगर आप अच्छी परफॉर्मर हैं तो कोई शक्ल देखता भी नहीं है। बाकी जब हम एक्टिंग करते हैं तो हमें खुद को भूल कर उस कैरेक्टर को अपनाना चाहिए।
-यानी आगे टीवी पर और काम मिले तो आप करेंगी?
-अभी तो मैं बहुत बिज़ी हूं। आगे भी सिर्फ सिलेक्टेड काम ही करना चाहूंगी। कोई अच्छा रोल हो या किसी शो के एंकर का ऑफर हो तो मैं कर सकती हूं।
-आगे क्या इरादा है, इंडस्ट्री में कब तक रहने का मन है?
-इंडस्ट्री में तो रहना ही है। मैं तो अगर शादी भी कर लूंगी तो भी फिल्में करती रहूंगी। मतलब जब तक फिल्में मिलती रहेगी और मैं फिल्में करने के काबिल रहूंगी तो मैं न नहीं कहूंगी।
-अभी कौन सी फिल्में आ रही हैं आपकी?
-अभी तो नाम साचेते हुए भी आलस आ रहा है। हां, एक तो ‘उलझन’ है, एक ‘सामना’ है और एक है ‘दुल्हन बनूं मैं तेरी’।
-इधर कुछ डायरेक्शन भी तो किया है आपने?
-हां, एम टीवी के लिए एक म्यूज़िक वीडियो डायरेक्ट किया था।
-आगे डायरेक्शन में जाने का कोई इरादा?
-देखिए अभी तो कुछ तय नहीं है। पता नहीं आगे क्या होता है। आगे की आगे सोचेंगे।
तभी दीप्ति के सहायक ने आकर बताया कि डायरेक्टर उन्हें अगले सीन के लिए बुला रहे हैं और वह हमसे विदा लेकर चली गईं। लेकिन जाते-जाते मेरे कहने पर दीप्ति ने ‘चित्रलेखा’ पत्रिका के पाठकों के लिए यह संदेश लिखा : ‘बहुत-बहुत धन्यवाद आपके साथ प्यार और प्रशंसा के लिए। बहुत से प्यार व स्नेह के साथ-दीप्ति भटनागर।’
(नोट-यह इंटरव्यू फिल्मी मासिक पत्रिका ‘चित्रलेखा’ के नवंबर, 1998 अंक में प्रकाशित हुआ था।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)