-दीपक दुआ...
भारत के चुनिंदा फिल्म समीक्षकों की संस्था ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ हर साल की तरह इस बार भी ‘क्रिटिक्स चॉइस अवार्ड’ देने जा रही हैं। अनुपमा चोपड़ा की अध्यक्षता वाली इस गिल्ड के सदस्यों में देश भर के नामी फिल्म समीक्षक हैं। इस बार होने जा रहे अवार्ड्स के लिए आईं सैंकड़ों शॉर्ट-फिल्मों को क्रिटिक्स की कई टीमों ने देखा और कई राउंड्स के बाद चुनिंदा फिल्मों को फाईनल में जगह मिली। अब इन फिल्मों को गिल्ड के तमाम सदस्य रैंकिंग दे रहे हैं जिनमें से सर्वश्रेष्ठ को पुरस्कृत किया जाएगा। इन फिल्मों में से काफी सारी किसी न किसी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं। चाहें तो आप भी इन्हें देख सकते हैं। कुछ के लिंक इस आलेख में भी हैं। आइए, ज़रा इन पांच पुरस्कारों के लिए नामांकित हुई फिल्मों पर नज़र डालें-
रामप्रसाद जी सिधार गए। अब उनके चारों बेटे, बहुएं,
दोनों बेटियां, दामाद,
उन सब के बच्चे, मामा,
ताऊ,
अलां-फलां आ पहुंचे हैं लखनऊ। अब आएं हैं तो तेहरवीं तक भी रुकेंगे ही। वैसे कभी इन्होंने रिश्तों को गर्माहट न दी लेकिन अब इन्हें फिक्र है पैसों की, कर्जे की, दुकान-मकान की और मां को कौन रखे,
इसकी। अब तेरह दिन साथ रहेंगे और दो नई बातें होंगी तो चार पुरानी भी खोदी ही जाएंगी। उलझे हुए रिश्तों की सलवटें भी सामने आएंगी और मुमकिन है कि कुछ सुलझ ही जाए, कोई टूटा तार जुड़ कर इनकी ज़िंदगी के सुर सही बिठा ही दे।
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में हुए हैं एक लाल बिहारी। एक दिन उन्हें पता चला कि उनके चाचा ने उनके हिस्से की पुश्तैनी ज़मीन हड़पने के लिए उन्हें कागज़ों में मृतक घोषित करवा दिया है। इसके बाद लाल बिहारी बरसों तक तमाम सरकारी दफ्तरों से लेकर कोर्ट-कचहरी तक चक्कर लगाते रहे कि उन्हें ज़िंदा घोषित किया जाए। कई बड़े लोगों के खिलाफ चुनाव तक में खड़े हुए और यू.पी. की विधान सभा में पर्चे तक उछाले। इस दौरान देश भर से उन जैसे ढेरों ‘मृतक’ लोग उनके साथ आ जुड़े और इन्होंने अपना एक ‘मृतक संघ’ तक बना लिया। बरसों के संघर्ष के बाद लाल बिहारी और कुछ अन्य लोगों को ‘ज़िंदा’ घोषित कर दिया गया लेकिन आज भी बीसियों जीवित लोग खुद को जीवित साबित करने की जद्दोज़हद में लगे हुए हैं।