-दीपक दुआ...
हर फिल्म हर किसी के लिए नहीं होती। जब बड़ी-बड़ी मनोरंजन प्रधान फिल्मों को गरियाने और नापसंद करने वाले मिल जाते हैं तो ऐसे में छोटे बजट और अलग मिजाज की फिल्मों की तो बिसात ही क्या। ‘एक्स-पास्ट इज़ प्रेज़ेंट’ जिस फ्लेवर की फिल्म है, अव्वल तो उसे समझने वाले ही कम होंगे। समझ भी गए तो पसंद करेंगे या नहीं, यह भी साफ नहीं है। असल में इस किस्म की फिल्में खुद को और एक बेहद सीमित दर्शक वर्ग को ही संतुष्ट कर पाती हैं। अपने यहां जिसे हम ‘फेस्टिवल सिनेमा’ कहते हैं, यानी ऐसी फिल्म जो फिल्म समारोहों के बौद्धिक वातावरण में ही ज्यादा देखी और सराही जाती हैं, उस किस्म की फिल्म है यह।
यह फिल्म इस मायने में भी अनूठी है कि 11 निर्देशकों ने इसके अलग-अलग हिस्सों को फिल्माया है। 11 अलग-अलग कहानियां नहीं हैं इसमें बल्कि एक ही कहानी के अलग-अलग हिस्से हैं जो एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। जाहिर है कुछ हिस्से खासे रोचक और कसे हुए हैं तो कुछ बेतरतीब और ढीले भी हैं। स्वरा भास्कर, राधिका आप्टे, हुमा कुरैशी, बिदिता बाग का काम याद रह जाता है। रजत कपूर तो जंचते ही हैं।
एक बात और, यह फिल्म भले ही एक पुरुष और उसकी जिंदगी में आई अलग-अलग औरतों की कहानी हो मगर असल में यह उन औरतों की कहानी ज्यादा है। कुछ बहुत ही हटके वाले दर्शकों के लिए बनी है यह।
अपनी रेटिंग-तीन स्टार
(नोट-2016 में अपना ब्लॉग शुरू करने से पहले बरसों तक अपन यहां-वहां फिल्म-रिव्यू करते रहे हैं। वे तमाम रिव्यू अपने पास सुरक्षित हैं। कोशिश है कि उन्हें एक-एक करके सामने लाया जाए। 2015 में 20 नवंबर को आई फिल्म ‘एक्स-पास्ट इज़ प्रेज़ेंट’ का तब लिखा यह रिव्यू वैसे का वैसा पेश है।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक
व पत्रकार हैं। 1993
से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार
पत्रों,
पत्रिकाओं,
न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए
हैं।)
भाई साहब, आपकी आँखों से सिनेमा पढ़ने की लत यूँ पड़ती जा रही है कि हमें डर है कहीँ परदे पर सगनेमा देखना न छूट जाए।
ReplyDeleteअपनी रेटिंग आपको 5 स्टार
शुक्रिया राजीव जी... सिनेमा देखना मत छोड़िएगा... सिनेमा है तो अपन हैं, अपनी कलम है...
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